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तीर्थंकर पार्श्वनाथ ____ भारत में पहली - दूसरी शताब्दी तक नागों का प्रभाव था। श्री नगेन्द्रनाथ बस लिखते हैं कि “नवनाग की जितनी भी मुद्राएँ पाई गई हैं, उन पर वृहस्पति नाग, देवनाग, गणपतिनाग आदि नाम खुदे हुए हैं। इससे साफ-साफ मालूम होता है कि नाग वंशीय राजगण पहली और दूसरी शताब्दी में राज्य करते थे। इस नव नाग की राजधानी नरवर में थी। विष्णु पुराण में नरवर पद्मावती नाम से प्रसिद्ध है। उक्त नागवंशधरों ने कान्तिपुरी और मथुरा में विजय पताका उड़ाई थी। मालवा का 'कुंछ अंश भी उनके अधिकार में था।"६
नागों का धर्म तथा संस्कृति
नागों को असुर, यक्ष या राक्षस नाम से भी सम्बोधित किया जाता था। आर्य लोग अपनों को देव तथा इन्द्र आदि नामों से सम्बोधित करते थे। राक्षसों तथा देवों की संस्कृति में एक विशेष अन्तर यह भी था कि राक्षस वनों की रक्षा करते थे तथा वे खेती के लिए अधिकाधिक वन काटने के पक्ष में नहीं थे। जब कि देव वनों को काटते रहते थे। चूंकि नाग वनों की रक्षा करते थे, इसीलिए वे राक्षस या यक्ष. कहलाये।
___वस्तुत: इन्द्र, देवता, राक्षस तथा असुरं अदि कोई अलौकिक व्यक्तित्व नहीं थे बल्कि इसी पृथ्वी के ही निवासी थे। विद्वानों का अनुमान है कि असुर राजा प्राय: अहिंसक जैन संस्कृति से संबद्ध थे। वे. यक्ष एवं पशु बलि. श्राद्ध और कर्मकाण्ड के विरोधी थे। आर्हत जैन-धर्म का पर्यायवाची है। यह बात और है कि धार्मिक विद्वेष के कारण 'असुर' शब्द हिंसक का पर्याय बना दिया गया।
उत्तर वैदिक काल में नागों की तरह व्रात्य भी अर्हन्तों को मानते थे तथा चेतियों (चैत्यों) की पूजा करते थे। ब्राह्मण परम्परा की अनुश्रुतियों में लिच्छवि, मल्ल, मोरिय आदि जातियों को व्रात्य 'कहा है। व्रात्य वे आर्य जातियां थीं जो मध्य देश के पूर्व या उत्तर-पश्चिम में रहती थीं तथा मध्य देश के ब्राह्मण, क्षत्रियों के आचार का अनुसरण नहीं करती थीं। वस्तुत: