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तीर्थकर पार्श्वनाथ का लोकव्यापी प्रभाव मुण्डक मत के लोग वन में रहने वाले, पशु यज्ञ करने वाले तापसों तथा गृहस्थ विप्रों से अपने आपको पृथक दिखाने के लिए सिर मुंडाकर भिक्षावृति से अपना उदर पोषण करते थे किन्तु वेद से उनका विरोध नहीं था। उनके इस मत पर पार्श्वनाथ के धर्मोपदेश का प्रभाव दिखाई देता है। यही कारण है कि एक विद्वान ने उनकी परिभाषा जैन सम्प्रदाय के अन्तर्गत की है, पर उनकी जैन सम्प्रदाय में परिगणना युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होती। ... नचिकेता जो कि उपनिषदकालीन एक वैदिक ऋषि थे, उनके विचारों पर भी पार्श्वनाथ की स्पष्ट छाप. दिखाई पड़ती है। वे भारद्वाज के समकालीन थे तथा ज्ञान यज्ञ को मानते थे। उनकी मान्यता में मुख्य अंग थे, इन्द्रिय निग्रह, ध्यानवृद्धि, आत्मा के अनीश्वर स्वरूप का चिन्तन तथा शरीर और आत्मा का पृथक बोध। इसी तरह “कात्यायन" जो कि महात्मा बुद्ध के पूर्व हुए थे तथा जाति से ब्राह्मण थे, उनकी विचारधारा पर भी पार्श्वनाथ के मन्तव्यों का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। वे शीत जल में जीव मान कर उसके उपयोग को धर्म विरुद्ध मानते थे, जो पार्श्वनाथ की श्रमण परम्परा से प्राप्त है। उनकी कुछ अन्य मान्यताएं भी पार्श्वनाथ की मान्यताओं से मेल रखती हैं। . बौद्ध वाङमय के प्रकाण्ड विद्वान पं. धर्मानन्द कौशाम्बी ने लिखा है "निर्ग्रन्थों के श्रावक 'वप्प' शाक्य के उल्लेख से स्पष्ट है कि निर्ग्रन्थों का चातुर्याम धर्म शाक्य देश में प्रचलित था, परन्तु ऐसा उल्लेख नहीं मिलता कि उस देश में निर्ग्रन्थों का कोई आश्रम हो। इससे ऐसा लगता है कि निर्ग्रन्थ श्रमण बीच-बीच में शाक्य देश में जाकर अपने धर्म का उपदेश कस्ते थे। शाक्यों में आलारकालाम के श्रावक अधिक थे क्योंकि उनका आश्रम कपिलवस्तु नगर में ही था। आलार के समाधिग्राम का अध्ययन गौतम बोधिसत्व ने बचपन में ही किया। फिर गृहत्याग करने पर वे प्रथमत: आलार के ही आश्रम में गए और उन्होंने योग मार्ग का आगे अध्ययन प्रारंभ किया। आलार ने उन्हें समाधि की सात सीढ़ियां दिखाई फिर वे उद्रकराम पुत्र के पास गए और उससे समाधि की आठवीं सीढ़ी सीखी किन्तु इतने से ही उन्हें सन्तोष नहीं हुआ क्योंकि उस समाधि से