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जैन एवं जैनेतर साहित्य में पार्श्वनाथ
राजपाट का त्याग कर तपस्या की और सद्गति प्राप्त की। तेरापुर आदि की गुफाओं में प्राप्त पुरातात्विक चिन्हों से तत्संबंधी जैन अनुश्रुति प्रमाणित होती है। पार्श्व के और भी तत्कालीन नरेश पार्श्व के अनुयायी हो गये
थे ।१२ .. ... डॉ चारपेण्टियर के अनुसार - “जैन धर्म मूल सिद्धांतों के प्रमुख तत्व महावीर से बहुत पूर्व, पार्श्वनाथ के समय से ही व्यवस्थित रहे आये प्रतीत होते हैं।" __प्रो. हर्सवर्थ के अनुसार - “गौतम बुद्ध के समय से पूर्व ही पार्श्वनाथ द्वारा स्थापित जैन संघ, जो निर्ग्रन्थ संघ कहलाता था, एक विधिवत् सुसंगठित धार्मिक सम्प्रदाय .था।" ___ प्रो. राम प्रसाद चाँद के अनुसार - “यह आमतौर पर विश्वास किया
जाता है कि महावीर से पहले भी जैन साधु विद्यमान थे, जो कि पार्श्वनाथ द्वारा स्थापित संघ से संबंधित थे। उनके अपने चैत्य भी थे। डॉ. विमलचरण लाहा ने भी उक्त तथ्य की पुष्टि करते हुये कहा है कि महावीर के उदय के पूर्व भी वह धर्म, जिसके कि वे अंतिम उपदेशक थे, वैशाली एवं उसके आस-पास के प्रदेशों में अपने किसी पूर्वरूप में प्रचलित रहता रहा प्रतीत होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कम से कम उत्तरी एवं पूर्वी भारत के कितने ही क्षत्रिय जन, जिनमें कि वैशाली निवासियों की प्रमुखता थी, पार्श्वनाथ द्वारा स्थापित एवं प्रचारित धर्म के अनुयायी थे। आचारांग सूत्र से पता चलता है कि महावीर के माता-पिता पार्श्व के उपासक एवं श्रमणों के अनुयायी थे।"
प्रो. जयचंद्र विद्यालंकार के अनुसार - अथर्ववेद में भी जिन व्रात्यों का उल्लेख है, वे अर्हतों और चैत्यों के उपासक थे। ये अर्हत और उनके चैत्य बुद्ध के बहुत पहले से विद्यमान थे। . इस बात के प्रमाण भी उपलब्ध हैं कि भगवान् पार्श्वनाथ एवं जैन धर्म की ऐतिहासिक मान्यता विदेशों में थी। प्रो. बील ने सन् १८८५ ई. में रॉयल ऐशियाटिक सोसायटी के समक्ष अपने एक कथन में बताया था कि