Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
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"यह मेरी बड़ी बहिन कौशिका का पुत्र है। इसका नाम 'वैश्रमण' है । यह समस्त विद्याधरों के अधिपति इन्द्र का सभट है। इन्द्र ने तेरे पितामह के ज्येष्ठ बन्धु माली नरेश को मार कर राक्षस द्वीप सहित लंकापुरी इस वैश्रमण को दे दी। तभी से तेरे पिता अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने की आशा लिये हुए यहां रह रहे हैं।
" राक्षसेन्द्र भीम ने, शत्रुओं के प्रतिकार के लिए अपने पूर्वज महाराज मेघवाहन को राक्षसी-विद्या के साथ राक्षस द्वीप, पाताल-लंका और लंकापुरी प्रदान की थी । वे लंकानगरी में राज करते थे। इस प्रकार वंश-परम्परा से चला आता हुआ राज्य, शत्रुओं ने ले लिया औरतेरे पितामह, पिता और हम सब विवशतापूर्वक यहाँ रहते हैं और अपनी राजधानी पर शत्रु राज कर रहे हैं । तेरे पिता के हृदय में यह दुःख, शूल के समान सदैव खटकता रहता है।"
"पुत्र ! मेरे मन में यह अभिलाषा है कि-कब वह शुभ दिन आवे कि मैं तुझे तेरे भाई के साथ लंका के राजसिंहासन पर बैठ कर राज करते और राज्य के इन लुटारुओं को तेरे कारागृह में बन्दी बने हुए देखू । जिस दिन यह शुभ संयोग प्राप्त होगा, वह दिन मेरी परम प्रसन्नता का होगा और मैं अपने को पुत्रवती होने का सौभाग्य समझूगी । बस, मैं इसी चिन्ता में जल रही हूँ।"
___ माता के दुःखपूर्ण वचन सुन कर क्रोधाभिभूत हुए विभीषण ने भीषण मुंह बनाते हुए कहा;--
"माता ! तुम्हें अपने पुत्रों के बल का पता नहीं है । इन आर्य दशमुखजी के सामने बिचारा इन्द्र, वैश्रमण और अन्य विद्याधर किस गिनती में हैं ? हम आज तक अनजान थे । इसलिए आपका यह दुःख अबतक चलता रहा । दशमुखजी ही क्या, ये कुंभकर्णजी भी शत्रुओं को नष्ट-भ्रष्ट करने में समर्थ हैं। इनकी बात छोड़ दो, तो मैं भी आप सभी की आज्ञा एवं आशीर्वाद से शत्रुओं का संहार करने के लिए तत्पर हूँ।"
विभीषण की बात पूरी होते दशानन बोला ;--
" माता ! आपका हृदय बड़ा कठोर एवं वज्रमय है । आपने इस हृदय-भेदक शल्य को हृदय में क्यों छुपाये रखा ? इन इन्द्रादि विद्याधरों से भयभीत होने की क्या आवश्यकता है ? इन्हें छिन्नभिन्न करना तो खेल-मात्र है । मैं इन्हें तृण के समान तुच्छ समझता हूँ।"
" यद्यपि मैं अपने भुजबल से ही इन शत्रुओं का संहार कर सकता हूँ, तथापि कुल-परम्परानुसार पहले मुझे विद्या की साधना करना उचित है । इसलिए मैं छोटे भाई के साथ विद्या की साधना करना चाहता हूँ। अतएव आज्ञा दीजिए।"
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