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माता-पिता के अनुकूम रहो, बड़ों से वाद-विवाद मत करो
उपाध्याय यशोविजय जी महाराज ने तो स्पष्ट कहा है कि
"मोक्षेण योजनादेव योगो ह्यत्र ।" (द्वात्रिंशिका १०, १) आचार्य हरिभद्र सूरि ने भी फरमाया है कि
"मुक्खेण जोयणाओ जोगों" (योगविंशिका १) अर्थात्-जिन-जिन साधनों से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष का योग होता है उन सब साधनों को योग कह सकते हैं।
पातंजल योगदर्शन में भी योग का लक्षण-"योगश्चित्त वृत्ति निरोधः।" अर्थात्-चित्त की वृत्तियों को रोकना योग कहलाता है । इस प्रकार योग की और भी अनेक परिभाषाएं हैं।
योग का महत्व "योगा: कल्पतरुः श्रेष्ठो, योगश्चितामणिः परः। योगः प्रधानं धर्माणां, योग: सिद्ध स्वयं ग्रहः ॥ ३७ ॥
(योगबिन्दु हरिभद्र सूरि) अर्थात्-योग कल्पवृक्ष है, योग उत्तम चिन्तामणि रत्न है। योग सब धर्मों में प्रधान है । योग स्वयं मोक्ष प्रदाता है । __भारत के जैन, वैदिक और बौद्ध इन तीनों प्राचीन धर्मों का समान रूप से यह सुनिश्चित सिद्धान्त है कि मानव जीवन का अन्तिम साध्य उसके आध्यात्मिक विकास की पूर्णता और उससे प्राप्त होने वाला परम कैवल्य एवं निर्वाण पद है । उसकी प्राप्ति के लिये जितने भी उपाय उक्त तीनों धर्मों में बतलाये गये हैं उनमें अन्यतम विशिष्ट 'योग' है। योग यह प्राचीन आर्य जाति की अनुपम आध्यात्मिक विभूति है । इसके द्वारा अतीत काल में आर्य जाति ने आध्यात्मिक क्षेत्र में जो उत्कर्ष प्राप्त किया था, उसका अन्यत्र दृष्टांत मिलना दुर्लभ है । योग का ही दूसरा नाम आध्यात्म-विद्या है ।
योग मोक्ष प्राप्ति का निकटतम उपाय होने से मुमुक्ष आत्माओं के लिये नितान्त उपादेय है। इसी दृष्टि को सन्मुख रखकर भारतीय महापुरुषों ने इसकी उपोगिता को स्वीकार करते हुए अपने-अपने दृष्टिकोण से इसका पर्याप्त वर्णन किया है। प्रमाण के लिए जैनों के आगमादि, बौद्धों के
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