Book Title: Shant Sudharas Part 02
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 12
________________ को आद्यन्त देखकर परिमार्जित किया है और इस ग्रन्थ विवेचन के अनुरूप संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित प्रस्तावना भी लिखी है, उनका मैं अत्यन्त आभारी हूँ। इस विवेचन को पढ़कर सभी भव्यात्माएँ मुक्तिमार्ग में आगे बढ़ें, यही मेरी हार्दिक अभिलाषा है। 7 . अन्त में, मतिमन्दतादि दोषों के कारण यदि कहीं जिनाज्ञाविरुद्ध आलेखन हुआ हो तो उसके लिए त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् । जैन उपाश्रय, गुजराती कटला पाली (राज.) -अध्यात्मयोगी पूज्य पंन्यासप्रवर श्री मद्भकर विजयजी गणिवयंभी का चरम शिष्याण मुनि रत्नसेन विजय ( १० )

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