Book Title: Shant Sudharas Part 02
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ विवेचनकार की कलम से.... 'कुछ' लिखने के पूर्व मुझे किसी लेखक के 'ये' शब्द यदि प्रा जाते हैं- 'A wound from the tongue is worse than a wound from a sword, for the latter affects only the body. the former the heart, mind and spirit also.' तलवार के घाव'प्रहार से भी वाकबाण का प्रहार अधिक भयंकर है, क्योंकि तलवार का प्रहार तो शरीर पर ही घाव करता है और बाह्य-उपचार के द्वारा उस घाव को ठीक भी किया जा सकता है, परन्तु वाक्-बाण का घाव तो अत्यन्त ही भयंकर होता है, जो हृदय और दिमाग को ही भेद डालता है, उस घाव को मिटाना अशक्य हो जाता है। इसीलिए कहा गया है-"बोलने के पूर्व सौ बार सोचें। क्योंकि वारणी के कमान से छूटे हुए शब्द बाण को वापस ग्रहण नहीं किया जा सकता।" 'अन्धे के बेटे अन्धे ही होते हैं'-द्रौपदी के इन शब्दों ने तो एक महाभारत खड़ा कर दिया। -असावधानी में बोले गए शब्द विष का काम करते हैं तो सोच-विचारपूर्वक बोले गए शब्द अमृत का भी काम कर सकते हैं । -संगीत के सुरीले स्वर जागृत व्यक्ति को सुला भी सकते हैं और सोए हुए व्यक्ति को जगा भी सकते हैं । आध्यात्मिक-साधना के बल से महोपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी म. के शब्दों में वह प्रचण्ड शक्ति पैदा हुई है, जिसके फलस्वरूप एक सुषुप्त चेतना जागृत हुए बिना नहीं रहती। _ 'शान्त-सुधारस' की यह अद्भुत-रचना ! इसमें शब्दों का लालित्य है तो साथ में भावों की ऊमियां भी उछलती हुई नजर आती हैं । ( ८ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 268