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है जो प्राय. विरल ही पाया जाता है। अनक वर्तमान समस्याओ के . समाधान में जैन मान्यताओ की सार्थक भूमिका को प्रस्तुत कर इसके जन मगलकारी सर्वोदयी एवं वैज्ञानिक रूप को प्रस्तुत किया है। फलत. उनकी यह लघु कृति प्रचलित लेखन परम्परा के विपर्यास मे जैन तत्र को इक्कीसवी सदी के प्रभावशील विश्वतंत्र के रूप में प्रस्तुत करती है।
इस विषय पर उन्होने अग्रेजी मे 'जैन सिस्टम इन नटशैल' (1993) लिखी थी। पाठकों के द्वारा दिये गये सुझावों के आधार पर उन्होंने इसे परिवर्धित कर हिन्दी में एक प्रकार से पुर्नलिखित किया है। मैंने सरसरी तौर पर इसे पढा है और इसमे मुझे रस मिला है। मैं चाहता हूं कि इसे सभी लोग पढे और अपने चितन को समयानुकूल रूप में ढाल कर धार्मिकता के उन्नयन की ओर बढ़े। मै इस पुस्तक के लेखक डॉ० नन्द लाल जैन और प्रकाशक पोतदार ट्रस्ट, टीकमगढ को अपना आशीर्वाद देता हूँ। वे सदैव धर्म की सेवा करते रहे और जैन धर्म को विश्व धर्म के रूप में प्रतिष्ठित करने में अपना योगदान करते रहे।
मगल आशीर्वाद
रीवा, 5 अप्रैल, 1997
(श्री 108) एलाचार्य नेमीसागर