Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 38
________________ जैन तंत्र की वैज्ञानिकता / 37 द. सैद्धान्तिक अवधारणायें और भौतिक जगत की घटनायें भौतिक जगत से संबंधित घटनाये, मुख्यतः, दो प्रकार की होती है-कुछ तो दृश्य होती है जैसे छह द्रव्य, जीवो का इन्द्रिय-आधारित वर्गीकरण, इन्द्रियो की कार्यपद्धति, ध्वनि की उत्पत्ति और संप्रसारण और पदार्था एवं ऊर्जा के विविध रूप आदि। कुछ घटनाये ऐसी होती है जिन्हे हम अदृश्य भी कह सकते हैं। इन्हे हम अवधारणात्मक, प्रातिभ या वौद्धिक विचारात्मक भी कह सकते हैं। इनके अतर्गत कर्मवाद, परमाणुवाद आदि समाहित होते है। यह पाया गया है कि समकालिक दृष्टि से जैनो ने अवधारणात्मक क्षेत्र मे अधि-वैज्ञानिकता का प्रदर्शन किया है। इसके विपर्यास मे, वे दृश्य घटनाओ के विवरणो मे उतने सफल नही माने जा सकते । फिर भी, यह महत्व की बात है कि उन्होंने उपकरणविहीन युग मे अनेक दृश्य घटनाओ की व्याख्या का प्रयास किया है। (i) परमाणुवाद और मौलिक कण __ अवधारणात्मक विचारो के क्षेत्रो मे जैनो ने सम-सामयिक दृष्टि से ससार को उत्तम कोटि का परमाणुवाद प्रस्तावित किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि वे परमाणुओ के गुणो के निरूपण मे पर्याप्त प्रगत विचारक थे। इन गुणो मे उनकी वैद्युत प्रकृति, गत्यात्मक गुण, अविनाशिता एव उनके सयोग के नियम-जो वर्तमान सयोजकता सिद्धान्त के समतुल्य हैं-मुख्य है। बहुतेरे विद्वान, जैन परंमाणु के अविभागी होने की अवधारणा को अब भी मानते है और वे उसे इलेक्ट्रान से लेकर क्वार्क तक की समकक्षता प्रदान करते रहे है। लेकिन सामान्य परमाणु सयोगो की ऊर्जात्मक आवश्यकताये यह सकेत देती है कि इन परमाणुओं को अन्य समकालीन दार्शनिको के द्वारा मान्य परमाणुओ के समकक्ष मानना चाहिये । वैज्ञानिक सिद्धान्त और अवधारणाये नये विचारो और तकनीको के कारण सदैव परिवर्धित होने की क्षमता रखती हैं। यह क्षमता, सामान्य विचारधारा के विपर्यास मे, अनेक धार्मिक अवधारणाओ मे भी पाई जाती है। परमाणु के अविभागी मानने की अवधारणा की कठिनाईयों को ध्यान में रखकर ही जैनो ने परमाणु के दो रूप माने-(1) आदर्श, या कारण परमाणु और (2) व्यवहार या कार्य परमाणु । इनमें व्यवहार परमाणु तो विभाजित हो सकता है लेकिन आदर्श परमाणु नहीं। सम्भवतः परमाणु संबंधी शास्त्रीय

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