Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 94
________________ समसामयिक समस्यायें और जैन धर्म 193 विविध कोटि के जीव और मनुष्य सभी आते है। इस अन्योन्य-सहायक वृत्ति का ही यह परिणाम है कि जैनों ने पशुओ और पौधों के प्रति करुणाभाव एव आदरभाव अपनाने की वृत्ति को अनिवार्य बनाया। जैनों को पर्यावरण संरक्षण सबंधी महत्वपूर्ण बिन्दुओं को "प्रकृति सरक्षण के लिये जैन घोषणा पत्र में प्रस्तुत किया गया है जो 1990 में अन्तर्राष्ट्रीय विश्वजनीन प्रकृति. सुरक्षा फंड, लदन के अध्यक्ष प्रिंस फिलिप को भेट किया गया था। इसके अतिरिक्त, यह सभी मानते हैं कि पर्यावरण प्रदूषण मानव की भौतिकवादी लोभवृत्ति का तथा धर्माचार्यों के उपदेशो की उपेक्षा का परिणाम है। यदि व्यक्ति और राष्ट्र जैन तत्र की अहिंसक आचार संहिता का पालन करे, प्रकृति की सेवाओं का दुरुपयोग न करें, अपनी भौतिकवादी उपभोक्ता संस्कृति के प्रश्रय की तुलना में आवश्यकताओं को कम करें, तो पर्यावरण की समस्या आज के समान क्रांतिक न बन पाये। यह मनोवृत्ति और प्रवृत्ति एक विशेष प्रकार का प्राथमिक एवं प्रारंभिक प्रशिक्षण चाहती है जो उपभोक्ता संस्कृति के प्रति अवाछनीय अनुराग को दूर करने के सकल्प मे सहायक हो सके। ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे धर्माचार्य भौतिकवादी वैज्ञानिको की तुलना में अच्छे और प्रभावी उपदेशक सिद्ध नहीं हो सके है जो मनुष्य को मनोवैज्ञानिकतः अहिंसक वृत्ति अपनाने के लिये प्रबल प्रेरणा दे सके। फिर भी, ऐसा तो प्रतीत होता ही है कि पर्यावरण समस्याओ को सुलझाने के लिये मनुष्य की अंतिम शरण ये अहिसामय धार्मिक सिद्धान्त ही होगे। हम यह देखते है कि मानव ने धर्माचार्यों के पर्यावरण सरक्षण के लिये उपयोगी प्राय. सभी उपदेशों की उपेक्षा की है। आज औद्योगीकरण एव वैज्ञानिक प्रगति को इसका दोषी माना जाता है पर इसका कारण भी मानव द्वारा ब्रह्मचर्य व्रत के समाजहित के अनुकूल न पालन कर जनसंख्या की अपारवृद्धि है। इसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये तो प्रत्यक्ष या परोक्ष उद्योग पनपे हैं। अतः पर्यावरण की सुरक्षा का प्रथम दायित्व तो मनुष्यो का ही है। यदि वे धार्मिकत. उपदिष्ट और वैज्ञानिकतः प्रस्तुत जनसख्या निरोधक साधन अपनायें, तो इस समस्या में पर्याप्त कमी आ सकती है। जैनो के अनेक व्रत और युक्तिया भी पर्यावरण संरक्षण को प्रेरित करती है। यदि हम अपनी आवश्यकताओं (परिग्रह, भोग, उपभोग

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