Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 100
________________ परिशिष्ट /99 परिशिष्टर 2 सारणी-2: एलवुड के विन्दुओं के आधार पर जैनतंत्र के मौलिक सिद्धांतों का विवरण 1. लोक के संबंध में धारणा विश्व एक है। इसके ऊर्ध्व, मध्य, और अध. के रूप मे तीन भाग है। मानव प्राणी मध्य लोक मे रहते है। इस विश्व मे चार प्रकार के प्राणी नारक, देव, पशु और मनुष्य रहते है। इसका विशिष्ट आकार है। यह अनादि और अनत है। इसे किसी दैवी शक्ति ने नही बनाया। इसमे ध्रुवता के बीच परिवर्तन सदैव होते रहते है। 2. ईश्वर या चरम तत्व ईश्वर चरम तत्व नहीं है। विश्व मे छह चरम तत्व-द्रव्य है-जीव, अजीव, गति एव स्थिति माध्यम, आकाश, काल 3. विश्व का प्रादुर्भाव प्राकृतिक, अनादि-अनत 4. विश्व की नियति विश्व मे सदैव उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालचक्र चलते रहते है। 5. मनुष्यों का प्रादुर्भाव प्रथम प्रार्दुभाव अनादि है। कर्मो के कारण ये अगणित पुनर्जन्म ग्रहण करते है। 6. मनुष्यों की नियति शुभ और अशुभ कर्मो के कारण अगणित जन्म और मृत्यु के चक्र । ये चक्र व्रत, तप एव आत्मानुभूति के कारण होने वाले कर्म क्षय से नष्ट होते है और परमसुख प्राप्त होता है।

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