Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 67
________________ 66/ सर्वोदयी जैन तंत्र द्रोणगिरी, चूलगिरि, श्रवणगिरि आदि भारत के कोने-कोने में फैले अनेक तीर्थ क्षेत्र है जहां से विभिन्न युगो मे अनेक साधुओं ने सिद्धि पाई है। इन तीर्थक्षेत्रो की विशेषता यह है कि ये प्राय. पर्वतीय उपत्यकाओं में स्थित है। इनकी यात्रा पर्वतारोहण की कला का पूर्वाभ्यास कराती है। इस दृष्टि से ये स्वास्थ्य केन्द्र भी माने जा सकते है। इस प्रकार धार्मिक महत्व के अतिरिक्त, इन क्षेत्रो का मनोवैज्ञानिक और शारीरिक महत्व भी है। इनकी यात्रा जैनो मे धर्म के प्रति श्रद्धा को प्रवलित करती है और साधर्मियों मे भाईचारे की भावना को बलवती बनाती है। दूसरे प्रकार के तीर्थ क्षेत्र "अतिशय क्षेत्र" कहलाते हैं। ये क्षेत्र (1) तीर्थकरो एव महापुरुषो के जन्म, दीक्षा एव ज्ञान प्राप्ति के स्थान हैं या (2) इन पर ऐसी प्राकृतिक या अचरजकारी घटनाये हुई है जिनसे जैनधर्म के प्रति विश्वास और प्रभावना में योगदान हुआ हो। इस कोटि के स्थानो का कलात्मक महत्व भी सभव है। इस प्रकार के क्षेत्रो मे वाराणसी, अयोध्या, . राजगिर, श्रवणबेलगोला, बावनगजा, खजुराहो, पपौरा, महावीर जी, तिजारा एव अन्य स्थान आते है। ये स्थान प्रायः समतल स्थानो पर होते है। कुछ अपवाद भी है लेकिन इनके साथ भी भक्ति एव पुण्यार्जन की भावना सहचरित रहती है। ये क्षेत्र भी भारत के चारो कोनो मे फैले है। इन क्षेत्रो का मनोवैज्ञानिक महत्व भी माना जाता है। कहते है कि इनकी यात्रा से मनोकामनाये भी पूरी होती है। तीसरी कोटि के पवित्र स्थान जैन कला एव स्थापत्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिये इनका महत्व द्वि-कल हो जाता है-कलात्मकतः और धार्मिकत.। इन स्थानो के मदिरों में न केवल मंदिर ही, अपितु प्रतिष्ठित प्रतिमाये भी मनोज्ञ होती है। आबू, राणकपुर, मथुरा, खडगिरि, खजुराहो आदि स्थान इस कोटि मे आते है। वर्तमान मे ऐसे अनेक क्षेत्रो का निर्माण हो रहा है जो इस कोटि मे आते है। इन्दौर का गोम्मटगिरि, अमरकटक का सर्वोदय तीर्थ आदि सभवत. इसी कोटि मे आवेगे। पर तीर्थ क्षेत्र किसी भी कोटि का क्यो न हो, उसकी यात्रा मनोवैज्ञानिकतः आत्मशुद्धि एव स्वास्थ्य शुद्धि मे कारण होती है। चटर्जी ने भारत के विभिन्न भागो मे फैले हुए लगभग 290 जैन तीर्थक्षेत्रो की सूची दी है। इससे प्रकट होता है कि जैनों के विभिन्न कोटि

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