Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 73
________________ 72 / सर्वोदयी जैन तंत्र काटेदार वृक्षो से भरा हुआ एक गहरा कुआ है। इन वृक्षो पर शहद के छत्ते लगे हुये है । इस संसार मे मधु बिन्दु के समान सुख की मात्रा कम और दुख की मात्रा विशाल है। यह मनुष्य उस चित्र 5 ससार कूप अल्प मधु-विदु की आशा मे सारा जीवन दुख मे बिताता है। जैनतत्र का ससारकूप प्रतीक एक ओर ससार की सुखमयता की उद्घोषणा करता है, वही दूसरी ओर यह सकेत भी देता है कि हमे इसमे सुखमयता बढाने के उपाय करने चाहिये । (द) लेश्या-वृक्ष : जैन मान्यता के अनुसार, मनुष्य के मनोभाव और प्रवृत्तिया छह प्रकार की होती हैं-तीन शुभ और तीन अशुभ। किरिलियन फोटोग्राफी द्वारा यह पता चलता है कि प्रत्येक मनुष्य के चारो ओर एक रंगीन आभ मडल रहता है जो उसकी मानसिकता व्यक्त करता | क्रूर भावो के आभामंडल है का रंग काला नीला ओर भूरा हाता है तथा चित्र लेश्या वृक्ष शुभ भावो क आभामंडल का रंग पीला लाल और सफेद होता है। वस्तुत मनुष्य के मनाभाव उसकी आध्यात्मिक प्रगति के निरूपक है। लेश्यावृक्ष एक फलदार पेड़ है जिसके फला को खाने के लिये छह आदमी भिन्न-भिन्न प्रकार से

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