Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 82
________________ समसामयिक समस्यायें और जैन धर्म /81 का भविष्य अत्यन्त आशावादी है। अनेक विदेशी विद्धानों ने जैनतंत्र के इस आशावादी रूप का अनुभव किया है और जैनो के सम-सामयिक समस्या निवारक स्पष्ट दृष्टिकोणो की सराहना की है। . 13. समसामयिक समस्यायें और जैन धर्म अभी कुछ ही समय पूर्व विश्व के एक-सौ महापुरुषों के विषय में जानकारी देने वाली एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी। इसमें महावीर का नाम सम्मलित किया गया था। पाश्चात्य विद्वानो द्वारा महावीर का इस सूची में चयन यह इगित करता है कि इस विश्व मे मानव व्यवहार के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण एवं उसके आध्यात्मिक स्वरूप के विवरण के लिये महावीर ने पश्चिम पर अमिट छाप छोडी है। जैनो का अनीश्वरवाद का सिद्धान्त मानव को स्वय (अपने पुरुषार्थ से) अपना भाग्यविधाता बनाता है। यह मानव को अपने समय की समस्याओ के समाधान के लिये समर्थ क्षमता प्रदान करता है। ये समस्यायें प्रायः मानवकृत ही हैं जिन्हे वह जैन नीतिशास्त्र और व्यवहारशास्त्र के निर्देशो के आधार पर सुगमता से हल कर सकता है। __हम लोग वैज्ञानिक एव औद्योगिक प्रगति के युग मे रह रहे हैं जहा हम अधिकाधिक भौतिक सुख-सुविधाओ एवं उपभोक्तावाद की ओर उन्मुख हो रहे है। आधुनिक युग की प्रवृत्तियो ने "स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन" के सिद्धान्त को झूठा सिद्ध करने की ठान ली है। इस युग में महावीर के युग की तुलना में अधिक समस्याये उत्पन्न हुई हैं। इनमे कुछ तो भूतकालीन समस्याये हैं और कुछ नवीन भी है। ये समस्याये व्यक्ति के नैतिक स्तर, पारिवारिक जीवन, महिलाओ का स्तर और उनकी भूमिका आदि व्यक्ति प्रधान जीवन से प्रारभ होकर धर्म, जातिवाद, जनसख्या, पर्यावरण, युद्ध और आर्थिक विषमता की समस्याओ तक जाती है। जैन मान्यता के अनुसार, अहिसा की मूलभूत अवधारणा के अनुप्रयोग उक्त समागओं के अनेक पक्षो के समाधान के लिये अमृत का काम कर सकते है। जैन व्यवहार शास्त्र मूलत. व्यक्ति के वौद्धिक स्तर और भौतिक व्यवहारो को उन्नत करने का मार्ग है। जैन विश्वास करते है कि उच्च

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