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समसामयिक समस्याये और जैन धर्म / 83 बौद्धिक मतभेद, इसीलिये, कभी भी उग्र रूप नहीं ले पाये क्योकि अनेकांतवादी जैन सभी मतंव्यों मे सापेक्ष सत्याश देखते है। यही कारण है कि यद्यपि जैनतंत्र व्यापक रूप से सप्रसारित नहीं हो सका, फिर भी इसके सिद्धान्त वर्तमान मानव जाति और उसकी भावी पीढियों के लिये नैतिकतः उन्नत समाज निर्माण के लिये मार्गदर्शन देते है। यदि हमे संघर्षहीन विश्व बनाना है, तो स्वय की उत्तमता की अवधारणा को सर्वसमकक्षता के रूप में परिवर्धित करना होगा।
जैन तत्र यह विश्वास करता है कि धर्म व्यक्ति और समाज के अधिकाधिक सुखमय बनाने का माध्यम है। इसके अनुसार, हमारे व्यवहार, दृष्टिकोण, विवाद और प्रवृत्तिया, क्षेत्र, काल, वर्तमान स्थिति और मौलिकता की चार दृष्टियो के अनुरूप होनी चाहिये। यह अपेक्षा दृष्टि बहुत कम तत्रों में पाई जाती है। यह मत इस तथ्य से सुनिश्चित हो जाता है कि इस अनुरूपता को बनाये रखने के लिए जैनाचार्यों ने समय-समय पर अपने मतो मे सयोजन, परिवर्धन, पुनःपरिभाषण एव सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्षो का समाहरण किया है। इस प्रकार जैनो मे कभी भी कट्टरवाद नहीं पनप पाया जो आज के युग में भयकर रूप से, अन्य तत्रो में, दृष्टिगोचर होता है और आज का प्रत्येक विवेकशील बुद्धिवादी उसकी निदा करता
___अहिसक जीवन पद्धति का यह एक अनिवार्य परिणाम है कि हम सभी मतवादो के प्रति साहिष्णु बने। जैनो की सापेक्षवादी विचारधारा का प्रशिक्षण न केवल हमे बौद्धिक दृष्टि से सहिष्णु बनाता है, अपितु व्यावहारिक दृष्टि से भी आदर्श बनाता है। यह समभावी या सर्वोदय की दृष्टि आज के युग की आवश्यकता है। इस दृष्टि को सभी लोगों मे पल्लवित करना चाहिये जिससे कट्टरवाद का शमन या विलयन हो एव ऐसे व्यावहारिक जीवन का उदय हो जो संप्रदायबाद के ऊपर उठकर सच्ची धर्म भावना को प्रेरित एव प्रवर्धित कर सके।
() महिलायें और जैन-तंत्र के सम्वर्धन में उनका योगदान
यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है कि पितृसत्ताक समाज ने सामान्यतः महिलाओ के प्रति सदैव अनुदारता दिखाई है, यद्यपि धार्मिक कथा कहानियो एवं इतिहास में इस प्रवृत्ति के कुछ अपवाद भी मिलते है। संभवतः वर्तमान