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86 / सर्वोदयी जैन तंत्र की तुलना में अधिक उदार रही हैं। यही कारण है कि वे न केवल भूतकाल में ही, अपितु वर्तमान काल मे भी विभिन्न क्षेत्रों में अपना कौशल प्रदर्शित कर रही हैं।
जैनों ने सामाजिक दृष्टि से वश-कुटुब की या मानव समाज की निरतरता बनाये रखने के लिये नैतिक दृष्टि से विवाह-प्रथा का संवर्धन किया है। वे मानते हैं कि मैथुनी ऊर्जा मानव की एक सांद्रित विधायक ऊर्जा का रूप है। इसे और भी अच्छे आतरिक विकास के समान रचनात्मक कार्यों के लिये सुरक्षित रखना चाहिये। नीचैर्मुखी मैथुनी ऊर्जा को ऊर्ध्वमुखी बनाना चाहिये। इसीलिये पश्चिम की तुलना में जैनो ने इसे नैतिकता का महत्वपूर्ण मापदंड माना है। यही कारण है कि साधु और साध्वियो को सदैव ब्रह्मचर्यपूर्वक रहने का सिद्धान्त स्थिर किया गया है। इस नियत्रित मैथुन सिद्धान्त का ही यह प्रतिफल है कि जैनो की जनसख्या मे सापेक्षतः अल्पवृद्धि होती है और उनकी समाज मे यौन अपराध नगण्य ही होते है। नियत्रित ब्रह्मचर्य सबधी महावीर के इस सिद्धान्त का महिला समाज की अनेक महत्वपूर्ण समस्याओ के समाधान के रूप मे विश्वस्तरीय सप्रसारण आवश्यक है। गर्भ-निरोधक उपाय यौन-सबधो के नैतिक अध:पतन को रोकने में सफल नही हो पाये है और एड्स के समान नई घातक बीमारियो ने और जन्म ले लिया है। अच्छे नैतिक जीवन एव समुचित सामाजिक समुत्थान के लिये आत्म सयम या ब्रह्मचर्य सर्वाधिक समर्थ उपाय है। इसके लिये दृढ इच्छाशक्ति, सकल्पशक्ति को विकसित करने की आवश्यकता है। इससे समग्रत यौन-अपराधो मे कमी होगी, महिला सबधी अनाचरणो मे कमी होगी और जनसख्या भी नियत्रित होगी। यह एड्स के समान रोगो की नियामक भी होगी। नियत्रित यौन-सबधो की धारणा आज के युग की माग है। जनसख्या नियत्रक सस्थाये यदि इस धार्मिक सिद्धान्त पर गहन विचार कर इसे अपने प्रयत्नो मे एक अतिरिक्त साधन के रूप में स्वीकार कर प्रसारित करे, तो यह महान लाभकारी होगा।
महिलाओ से सबधित एक सामाजिक प्रकरण ने और राष्ट्रीय महत्व का रूप लिया है। यह गर्भपात से सबधित है। धर्म की व्यक्तिगत विकास की अहिसक धारणा के दृष्टिकोण से निश्चित रूप से इसका समर्थन कोई भी न करेगा। लेकिन जब यह समस्या सामाजिक एव राष्ट्रीय रूप लेती है,