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जैन सिद्धातों का प्रभावी संप्रेषण / 71
आराध्य हैं। यह त्रिरत्न का भी प्रतीक है। यह ब्रम्हा, विष्णु और महेश की शक्तियो का भी प्रतीक है। यह प्राण-शक्ति का भी द्योतक है। यह नाडी संस्थान की नियंत्रक है। कुछ लोगो का कथन है कि यह अनेकांतवाद की त्रिपदी का भी प्रतीक है।
यह माना जाता है कि जब तीर्थकर को सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है, तब उसके शरीर से स्वतः ही तात्कालिक ओम् ध्वनि प्रस्फुटित होती है। यह ध्वनि सकारात्मक ऊर्जा का सांद्रित रूप है। इसके उच्चारण से मन शांत और पवित्र होता है । फलतः ओम् का प्रतीक पचपरमेष्ठी का स्मरण कराता है, आतरिक ऊर्जा के सचय को प्रेरित करता है और मानसिक एकाग्रता को बढाने के संदेश देता है । यह अनेक मत्रो का प्रभावी बीजाक्षर है जो कल्याणकारी माना जाता है । "ओम् हीं अर्ह" एक ऐसा ही महाप्रभावी बीजाक्षरी मत्र है जो जपको को शक्तिशाली बनाता है।
(ब) स्वस्तिक :- स्वस्तिक का प्रतीक भी अनेक तत्रो मे माना जाता है। यह मगल, समृद्धि और कल्याण का प्रतीक है। ओम् के समान मागलिक अवसरो पर स्वस्तिक भी लिखा जाता है। जैनतत्र के अनुसार, इसकी चार भुजाये ससार की चार
गतियो नरक, देव, पशु और मनुष्य की निरूपक है । यह
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चित्र 4, स्वस्तिक का चित्र
प्रतीक स्मरण कराता है कि जीवन का लक्ष्य इन गतियों के परिभ्रमण से मुक्त होना है। स्वस्तिक को अष्ट मंगल द्रव्यो मे से एक माना जाता है। पाच स्वस्तिको के विशिष्ट ज्यामितीय एव कलापूर्ण समुच्चय को नयावर्त कहते है । यह प्रतीक सौभाग्य एव मगल का द्योतक है। स्वस्तिक लिखकर भी बनाया जाता है और माडलो (मोडल आदि मे) मे रग-विरगे पूर्ण-तडुलों के दानो से भी बनाया जाता है।
(स) संसार कूप : जैन मान्यता के अनुसार यह विश्व गहन एव