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जैन सिद्धांतों का प्रभावी संप्रेषण / 69
संसार का ही विशिष्ट पर्व है जिसमे समाज के दुर्बल सदस्य - विशेषतः महिलाये अपने से अच्छी स्थिति वाले समुदाय से भ्रातृभाव को एक भौतिकतः कमजोर पर मानसिकतः प्रबल सूत्र बंधन से सुदृढ करते है और एक-दूसरे की सुरक्षा को संबल देते हैं। क्षमावाणी और प्रायश्चित सबत्सरी का व्रत भी जैनो की एक विशेषता है जिसे आजकल विश्व क्षमावाणी दिवस" के रूप में संसार के अनेक भागो में मनाया जाने लगा है। इस दिन समाज के व्यक्ति एक दूसरे से अपनी जाने अनजाने हुई भूलो के लिये क्षमा मांगते है और भविष्य मे उत्तम व्यवहार के लिये वचनबद्ध होते है । यह सामाजिक भाईचारा को सवर्धित करने वाला महान पर्व है । यह पर्युषण पर्व का समारोपक उत्सव है। जिन वाणी सग्रहो की सूची के अनुसार जैनो के पर्वों और व्रतो की सख्या प्रतिवर्ष 250 से अधिक ही बैठती है । इससे यह सकेत मिलता है कि यदि अन्य प्रकार के धर्म प्रभावना के आयोजन जोडे जावे, तो वर्ष का प्रत्येक दिन ही व्रत-विधान का दिन माना जाना चाहिये ।
आजकल सामूहिक मत्र-स्तोत्र पाठ (णमोकार मंत्र, भक्तामर स्तोत्र आदि) और भजन- स्तुतिया भी उत्सव के रूप मे आयोजित होने लगे है । यही नही, पर्व के दिनो मे धार्मिक उद्देश्यो एव कथाओ से सम्बन्धित नृत्य, नाटक- नाटिकाये आदि के कलात्मक प्रदर्शनो की ओर भी नई पीढी का ध्यान जाने लगा है। विदेशो मे यह प्रक्रिया अग्रेजी भाषा के माध्यम से भी प्रदर्शित होने लगी है। अनेक लोग यह अनुभव करते है कि सभवतः एक वर्ष मे जितने दिन होते है, उससे कही अधिक पर्व और उत्सव होते है। तथापि यह ध्यान में रखना चाहिये कि अनेक उत्सव वैकल्पिक या स्वैच्छिक होते है और व्यक्ति या समूह उनका चयन कर उन्हे मनाते है। ये पर्व और उत्सव तथा विधि-विधान जैन-तत्र के भूतकालीन एव वर्तमान प्रभावकता, रंगीलेपन एव जीवतता के प्रतीक है। वस्तुतः ये जैन-तत्र के सरक्षित बने रहने के एक महत्वपूर्ण कारण रहे है।
10. जैन सिद्धान्तों का प्रभावी सम्प्रेषण
जैनाचार्यो ने जैन सिद्धान्तो के प्रभावी सम्प्रेषण के लिये अनेक उपाय