Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ पशु सब जीवो को - सहसोग सब जीवों से सहयोग विदेशो मे जैन धर्म 175 विश्वरचना मे सम्यक् दर्शन सिद्ध शिला (1) चक्रयुक्त सम्यक् ज्ञान पजा, (2) मनुष्य सम्यक् चरित्र स्वस्तिक (3) तीन बिन्दु नारका और (4) अर्धचन्द्राकार अहिंसा स्थान पर बिन्दु बनाये ___ सब उसी को-~-परस्परोपग्रहो जीवानाम्— सब जीवों से गये है। यहा चित्र 10 जैन विश्व चक्रयुक्त पजा अहिसा और अभय तथा सर्व-जीव-समभाव का प्रतीक है, स्वस्तिक को तो चार गतियो का प्रतीक बताया ही जा चुका है, तीन बिन्दु जैन धर्म के अध्यात्म पक्ष की त्रिवेणी-रत्नत्रय (सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र) के प्रतीक है जिनके अनुपालन से ससरण-स्वस्तिक को सुखमय बनाया जा सकता है। अर्धचन्द्राकार स्थान सिद्ध शिला कहलाती है जहा बिन्दु के रूप मे सिद्ध-मुक्त जीव रहते है। इस प्रकार इस प्रतीक मे जीवन के लक्ष्य (उत्तम सुख, सिद्ध शिला प्राप्ति) और लक्ष्य प्राप्ति के उपाय (अहिसा, अभय और रत्नत्रय) तथा वर्तमान ससार का आकार एव विविधता के आयाम बताये गये है जहा से हमे सिद्धि प्राप्त करना है। इस प्रतीक के नीचे जैनतत्र का प्रेरक. वाक्य भी लिखा गया है जिसके अनुसार "सभी जीव" एक दूसरे के उपकारक है । फलत हमे स्वय जीकर अन्यो के जीवन के उत्थान मे सहयोगी बनना चाहिये । यही धर्म पथ है, यही जीवन पथ है और यही अध्यात्म पथ है। 11. विदेशों में जैन धर्म जैन इतिहास के अनुसार, भगवान रिषभदेव या आदिनाथ वर्तमान अवसर्पिणी युग मे जैनधर्म के पहले प्रवर्तक हुये। इन्होने श्रमण सस्कृति के विश्वधर्मी सिद्धान्तो का सार्वत्रिक प्रचार किया। इनका उल्लेख वेदो और

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101