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74/ सर्वोदयी जैन तत्र भी अपने जीवन में सहनशीलता बरतते हुये पारस्परिक हितो का ध्यान रखना चाहिये
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रखना चाहय और ससार में . सुख की वृद्धि
करना चाहिये। चित्र ४ एक घाट पर सिंह और शावक
(व) धर्म चक्र :- यह धर्म चक्र गतिशील ससार का प्रतीक है। इसे शाति और समृद्धि के प्रशस्त मार्ग पर चलने के लिये चक्र के विभिन्न आरे अनेक व्रत एव स यम के नियमो के प्रतीक है । इनसे ही स सार मे सुखमयता बढ़ती है। धर्मचक्र के
चित्र 9 धर्मचक्र दोनो ओर सत्य और अहिसा के प्रतीक दो हिरण बने रहते है। इस चक्र को चतुर्विध सघ आदरभाव से देखता है। ससार के सभी जीवो का कल्याण सत्य और अहिसा से ही होता है। ये ही दो घटक हमे ससार चक्र के परिभ्रमण से मुक्त कर सकते है। सत्यभक्त ने इसीलिये सत्य को भगवान और अहिसा को भगवती ही मान लिया है।
(श) जैन विश्व : जैनतत्र के इस समग्र सक्षेपण के प्रतीक की उद्भावना वीर निर्वाण की पच्चीसवी सदी के अवसर पर 1974-75 मे की गई थी। इस चित्र के अनुसार, जैन विश्व को दोनों पैर फैलाकर खडे और कमर पर हाथ मोडे मनुष्य के समान आकार का मानते है। इसमे वर्तमान विश्व मध्य मे पडता है जो गोलाकार माना जाता है जहा हम रहते है। इस