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78 / सर्वोदयी जैन तंत्र
जैन प्रतिनिधि श्री वीरचंद्र राघव जी गांधी ने महान योगदान किया है उनके जैनधर्म सम्बन्धी लोकप्रिय व्याख्यान वर्षों तक विदेशों में हुये ।. वैरिस्टर चम्पतराय मण्डली ने भी अंग्रेजी मे जैन साहित्य लिखकर एवं अनुदित कर उसे जनसुलभ बनाया और उसके विदेशो में लोकप्रिय बनाने । योग दिया। डा० कामता प्रसाद जैन ने "विश्व जैन मिशन" सस्था तथा बाइस आफ अहिंसा" "अग्रेजी जैन गजट" तथा सैकड़ों लघु पुस्तिकाओ के माध्यम से इस कार्य मे योग दिया। उन्होंने लदन की जैन लाइब्रेरी तथा बडगोडेस वर्ग के शासकीय पुस्तकालय को जैन साहित्य से आपूरित किया । यद्यपि उनका यह मिशन सुनियोजित रूप न ले सका, फिर भी इसके कारण विश्व के अनेक भागों में सैकडो जैनेतरो मे जैन धर्म के प्रति रूचि जागी । अब इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिये अनेक सस्थाये सुगठित हुई है। यह भाग्य की बात है कि बीसवी सदी के प्रारम्भ मे भारत से आये अनेक जैन व्यापारी विदेश के विभिन्न भागो मे व्यापार हेतु जाने लगे और उसमे सफलता पाकर विदेशो मे ही बसने लगे। इस बीच अनेक लोग उच्चतर अध्ययन, आजीविका हेतु भी उस ओर जाने लगे। फलतः अफ्रिका, यूरोप, उत्तरी अमेरिका एवं एशिया महाद्वीप के अनेक भागो मे जैन पर्याप्त संख्या मे पहुचे । यह विदेशवासी जैनो की दूसरी पीढी थी । कालातर मे इस पीढ़ी ने पिछले 15-20 वर्षों मे अपनी ही संस्कृति के सरक्षण के उद्देश्य से अनेक सस्थाये, संस्था-संघ एव जैन केन्द्र खोले । नैरोबी, लेस्टर, सिद्धाचल, शिकागो, डल्लास आदि मे जैन मंदिर बनवाये और प्रभावक प्रतिष्ठाये आयोजित की। समय-समय पर अल्पमोली साहित्य भी (पत्र पत्रिकाये भी) प्रकाशित किया। इस सदी के सातवे दशक से तो जैन साधु भी वहा पहुचने लगे और योग तथा ध्यान की प्रक्रिया के माध्यम से जैनतत्र को लोकप्रिय बनाने लगे। अब तो प्रतिवर्ष प्राय. एक दर्जन से अधिक साधु-साध्वी और इतने ही विद्वान वहा जाने लगे है जो अपने सार्वजनिक भाषणों से इस तत्र को और भी लोकप्रिय बना रहे हैं। इस लेखक ने भी प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि इससे अनेक विदेशी विद्वानों से उनका सपर्क हुआ है जो अब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विश्व के कोने-कोने मे जैन संस्कृति के दूत बनकर उसे सप्रसारित कर रहे हैं। अब जैनविद्याये अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनो का अग बनने लगी हैं। अनेक जैन और जैनेतर विद्वान इनमे भाग लेते है। जैन संस्कृति के विविध