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धार्मिक यात्रा हेतु पवित्र स्थल : तीर्थ क्षेत्र / 65में इसका मनोहारी रूप बड़ा आकर्षक होता है। इन कलाओं में से अब कुछ का महत्व और अस्तित्व क्रमश कम होता जा रहा है।
जैन कला और स्थापत्य का प्रमुख उद्देश्य जैन संस्कृति का सरक्षण एवं संवर्धन रहा है। यह धर्म श्रद्धालुओ में आतरिक दृष्टि से मनोवैज्ञानिक आनद भी देती है। इससे इनके निर्माताओ की प्रतिष्ठा भी बढती है। जैनो का विश्वास है कि कला सत् धर्म भावना की प्रतीक है। कला के धार्मिक महत्व के अतिरिक्त, यह राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतिनिधित्व करती है। यही कारण है कि बहुत से जैन धार्मिक कला केन्द्र पर्यटको के आकर्षण केन्द्र (खजुराहो, पालीताना आदि) भी बन गये है ।
8. धार्मिक यात्रा हेतु पवित्र स्थल : तीर्थ क्षेत्र
अन्य धर्मो (बौद्धो के लिये बुद्धगया और सारनाथ, हिन्दुओ के लिये चारो धाम, मुस्लिमो के लिये मक्का-मदीना, ईसाइयो के लिये बेटिकन सिटी और यहूदियो के लिये यरूशलम आदि) के समान जैनो के भी अनेक पवित्र तीर्थ स्थान है। परम्परागत जैन अनुयायी इनकी यथाशक्ति यात्रा करना अपना कर्तव्य समझते है । यद्यपि मुस्लिमो के समान दानपात्र एवं यात्रा जैनो मे अनिवार्य कर्तव्य नही माना जाता, फिर भी तीर्थ यात्रा पर लोगो की श्रद्धा है | तीर्थस्थान ऐसे पवित्र स्थान माने जाते हैं जहा कोई विशिष्ट धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण या पुण्यकारी घटना घटी हो और जहा जाने पर उसके दर्शन - स्मरण से भावात्मक विशुद्धि एवं उत्कृष्ट जीवन लक्ष्य की प्राप्ति के लिये प्रेरणा मिले। वर्तमान मे तीन प्रकार के तीर्थ स्थान पाये जाते है - (1) निर्वाण क्षेत्र (2) अतिशय क्षेत्र और (3) कला क्षेत्र । निर्वाण क्षेत्र ऐसे पवित्र स्थान है जहा से तीर्थंकरो, शलाकापुरुषों तथा साधुओ ने अपने जीवन का चरम लक्ष्य प्राप्त कर सिद्धि पाई हो। इस प्रकार के क्षेत्रों के विवरण "निर्वाण काड" नामक प्राकृत रचना मे दिया गया है। उनकी यात्रा महान् पुण्यार्जनी मानी गई है। यह एक बाह्यतप के रूप मे भी मानी जाती है। ऐसे क्षेत्रो मे पारसनाथ, चपापुर, तथा पावापुर बिहार प्रदेश में हैं, गिरनार गुजरात मे है, कैलाश हिमालय मे है। ये चौबीस तीर्थकरों की निर्वाण भूमिया है । इसके अतिरिक्त, शत्रुजय, तारंगा,