Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ जैन तंत्र की वैज्ञानिकता / 39 गये हैं-(1) कार्यकारी और (2) विरोधी। जैनों में क्षयकारी, उपशम य दमनकारी एवं आकर्षण बल भी माने गये हैं। ये मनोबल और कायबल (तप आदि) के समवेत परिणाम हैं। जैन तत्र मे वस्तुओ के पतन में सहायक गुरुत्व बल का भी परोक्ष संकेत है। इन्होंने एक अन्य भौतिक बल-कर्म शक्ति को भी माना है जो हमारी भौतिक एव भावात्मक क्रियाओं तथा परजन्म के लिये उत्तरदायी है। कर्मबल S (Karmic force) और प्रभाव R (Effect) के अध्ययन से वीवर -फ्रेशनर ने एक आनुभविक समीकरण प्रस्तुत किया है s= KInR..... ...... . ... ..... . .. .... ......(14) जहां विशिष्ट प्रेरको से विशिष्ट परिणामों का संकेत मिलता है। यह समीकरण मध्यम परिसर के प्रेरकों के प्रभाव पर सत्यापित किया गया है। इससे कर्मबल की मनोवैज्ञानिकता विश्वसनीय बन गई है। इससे यह सभावना बलवती हो गई है कि कर्मवाद के व्यापक प्रभावो की मनोवैज्ञानिकता की गणितीय व्याख्या की जा सकती है। इस दिशा में गहन चिंतन और प्रयत्न आवश्यक है। जैनो का कर्मबल (या क्रियाये) कर्मों के आस्रव और बध के लिये तो . उत्तरदायी है ही, वह एक अन्य महत्वपूर्ण सासारिक प्रक्रिया-जीवों के प्रजनन, जीवन-सचरण के लिये भी उत्तरदायी है। यह कहा जा सकता है कि कार्मिक बलो का घनत्व D. उच्चतर गतियों D, (Destinity)-नरक, देव, तिर्यन्च और मनुष्य के विलोम अनुपात मे होता है, अर्थात् D... -, या Dr - .. .. . .. ... ... ... (15) D D इस समीकरण से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि मनुष्य गति अल्पतर कार्मिक घनत्व के कारण मिलती है। इसी गति से उच्चतम सुख की दशा प्राप्त की जा सकती है। प्राणि जगत का प्रत्येक घटक अपनी गति को, अपने कार्मिक धनत्व के संचय के अनुपात मे, उच्चतर या निम्नतर गति मे अपर जन्म में उत्परिवर्तित कर सकता है। इस दृष्टि से- जैन कर्मवाद डार्विन के विकासवाद का किचित् समुन्नत मनोवैज्ञानिक रूप है जहां

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101