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जैन तत्र का इतिहास /55 सारणी 1: कुछ जैन जातियों का विवरण
जाति
उत्पत्ति स्थान
समय
आचार्य
गोत्र
1
ओसबाल
श्रीमाल
पोरवाल,
प्राग्वाट
पल्लीबाल
ओसिया, जोधपुर 457 ई०पू०. रत्नप्रभसूरि 1444
165 ई भीनमाल, जालोर 7-8वीं सदी भीनमाल पूर्वीभाग 8 वीं सदी - पुरा मेवाड़ पाली, राजस्थान,
रत्नप्रभसूरि - पल्ली, दक्षिण भारत खडेला,सीकर सदी, 8 वीं सदी जिनसेन
84 बघेरा, टोक 8वीं सदी रामसेन अग्रोहा, (हरियाणा) 1 सदी 8 वीं सदी अग्रसेन, लोहाचार्य 18 नरसिहपुर, मेवाड जैसलमेर
5
खण्डेलवाल
बघेरवाल
अग्रवाल
चितौड/नागदा
आठवी सदी
नरसिहपुरा
जैसवाल 10-11 चित्तौडा/
नागदा 12 हुम्बड़ 13 परवार
गोलापूर्व 15 गोलालारे
डूंगरपुर, राज० मेवाड/गुजरात
1सदी, 6 सदी
गोलाकोट
ग्वालियर
16. पद्यावती पुरवाल पद्यावती
दसवीं सदी से पूर्व उल्लेख नही पाया जाता। फलतः इनका विकास उत्तरकालीन ही मानना चाहिये।
जैनो की मूल वैश्य जाति समय के साथ अनेक उपजातियों मे विभाजित होती रही। कहते हैं कि ये विभाजन सबद्ध तत्रो की सजीवता को व्यक्त करते हैं। भारत के विभिन्न भागों में समान विचारधारा के जैन अनुयायियो ने अपनी-अपनी जातियों का निर्माण किया। सामान्यत. यह