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जैन आगम साहित्य /61 यद्यपि आगमों में जैनों के मूल सिद्धान्त बताये गये हैं, फिर भी वाचनाओं में भिन्नता के कारण दोनो सम्प्रदायो मे उनकी मान्यता के विषय में कुछ चर्चा पाई जाती है।
जैनों का आगम साहित्य तीन कोटियों में वर्गीकृत किया जाता हे-(1) पूर्व या पूर्व-आगम (2) आगम और आगमकल्प ग्रन्थ और (3) पूरक या उपआगम । पूर्व आगमों के 14 ग्रन्थ हैं जो अब अनुपलब्ध हैं। लेकिन इनकी विषय वस्तु 12 आगम ग्रन्थों के बारहवें ग्रन्थ (दृष्टिवाद) के एक अश के रूप में समाहित की गई है। आगमो को शास्त्रों में "अंग" कहा जाता है। इनकी संख्या बारह है जिनमें आचारांग, सूत्र कृताग, व्याख्या प्रज्ञप्ति आदि प्रमुख है। बारहवा दृष्टिवाद अंग सबसे विशाल है, पर उसे लुप्त माना जाता है। पूरक या उप-आगमों को "अगबाह्य" कहा जाता है। इनकी सख्या समय-समय पर परिवर्ती होती रही है। इनमें से उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, निशीथ और रिषिभाषित के समान कुछ ग्रन्थ आगमो के समान प्राचीन है। पर कुछ तो उत्तरवर्ती 5-6 वीं सदी में भी लिखे गये हैं। इन उप-आगमों के पाच वर्ग है-(1) 12 उपाग (2) छेद-सूत्र (3) मूल-सूत्र (4) प्रकीर्णक और (5) चूलिका। इन आगमो मे साधु आचार और नियम
और इनके उल्लघन पर दड व्यवस्था जैन तत्र के मुख्य सिद्धान्त, प्रेरक धर्म कथाये एव पुराणकथाये तथा सवाद और तर्कवाद के माध्यम से अन्य दर्शनो के खडन एव जैन-मत मडन पाये जाते है। अगवाह्य ग्रन्थो में भी यही विषय-वस्तु पाई जाती है लेकिन उनमे कर्मकाड, लोकशास्त्र (भूगोल), प्रार्थनाये एव स्तुतियां एव मुनि चर्चायें भी उल्लिखित हैं। इन आगम और उप-आगमों की सख्या 32 से 84 के बीच मानी जाती है जो श्वेतांबरों के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा मान्य एवं विभिन्न समयो में रचित ग्रन्थों पर आधारित है। फिर भी, मुख्य आगम ग्रन्थ 32 ही माने जाते हैं जिनका आधार दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग का स्मृति हास है।
दिगंबर सम्प्रदाय में जैन आगमो का इतिहास कुछ विशिष्ट ही है। यद्यपि वे भी आगम साहित्य के उपरोक्त तीन वर्गों को मानते हैं लेकिन वे केवल 26 ग्रन्थों को ही मानते हैं। इनके पूर्व-आगम एवं आगम-ग्रन्थों के नाम समान हैं पर उनके उप-आगमों के बहुतेरे नाम समान है पर अन्य कुछ नाम मिन्न भी हैं। तथापि, उनकी मान्यता है कि यह सब आगम साहित्य लुप्त या स्मृति-हासित हो चुका है। इसके विपर्यास मे, वे दो मूल