Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 37
________________ 36/ सर्वोदयी जैन तंत्र निरीक्षण के आधार पर इस पच चरणी विधा के अनुप्रयोग से वह पर्वत पर अग्नि के होने का निम्न चरणो मे अनुमान लगा लेता है: 1. पर्वत पर अग्नि है (प्रतिज्ञा, विश्लेषण) 2. क्योकि वहा पर धुवां दिख रहा है (निरीक्षण, हेतु, कारण) 3a. जहां जहा धुवा होता है, वहां वहा अग्नि होती है, जैसे रसोई घर (समर्थक निदर्शन, निरीक्षण) 3b. जहा धुवा नही होता, वहा अग्नि भी नही होती, जैसे पानी का तालाब (विरोधी निदर्शन, निरीक्षण) 4 चूंकि पर्वत पर धुवा दिख रहा है (विश्लेषण, अनुप्रयोग) .5 इसलिये पर्वत पर अग्नि है (निष्कर्ष, अनुमान) यह न्यायशास्त्रीय पुरातन युग का उदाहरण है जो आज के धुवारहित गैस या विद्युत भट्टियों के युग में व्यभिचारी या अनैकांतिक दोष के कारण विचित्र-सा लग सकता है। न्यायशास्त्र के अनेक प्राचीन उदाहरणो की नियति भी आज ऐसी ही हो सकती है। तथापि उन दिनो धुवा और अग्नि के सह-चरित होने का तथ्य निरीक्षित था। यह पचचरणी निष्कर्ष निर्धारण प्रक्रिया निरीक्षण, विश्लेषण और निर्णय के वर्तमान वैज्ञानिक चरणो को निरूपित करती है जो आज भी सह-सबधित तत्रो में अनुप्रयुक्त होती है। प्राचीन जैन आचार्यों ने जो ज्ञान राशि उपलब्ध की थी, उसका आधार यही वैज्ञानिक तर्कशास्त्र विधि थी। यह तत्कालीन युग के लिये वैध माननी चाहिये । तथापि इसकी वैधता ऐतिहासिक दृष्टिकोण से ही होगी। ___ भारत में पूर्व--मध्यकाल से उत्तर मध्यकाल तक तर्कशास्त्र का अच्छा विकास हुआ। इसमे जैनो का महत्वपूर्ण योगदान है। इस विकसित तर्कशात्र में अनेकातवाद के उपयोग से, जैनो ने अनेक शास्त्रार्थ जीते और अपने को एकान्ती मान्यताओ के विपर्यास मे मध्यमार्गी बनाया। निश्चय और व्यवहार दृष्टियों को अपनाकर उन्होने आत्मा की मूर्तता-अर्मूतता, शब्द की नित्यानित्यता, परमाणु की द्विविधता आदि के व्यावहारिक सिद्धान्तों का सपोषण किया। तर्कशास्त्र ने जैन तत्रो को वैज्ञानिकतः सूक्ष्म निरीक्षक बनाया एव बौद्धिकतः तीक्ष्ण विश्लेषक भी बनाया। जैनो के तर्कशास्त्र की आज भी महती प्रतिष्ठा है। यह उनकी वैज्ञानिकता का परिचायक भी है।

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