Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 33
________________ 32 / सर्वोदयी जैन तत्र इसकी परिलक्षित दीर्घजीविता का कारण है। इस वैज्ञानिक दृष्टि के पल्लवन के साथ ही, दीक्षित ने इसके सिद्धान्तों के विकास को जानने के लिये ऐतिहासिक दृष्टिकोण अपनाने का एक नवीन सुझाव दिया है। उन्होने इस मत के परिपोषण में अनेक विचारो के विकास को निर्देशित भी किया है। इस प्रकार, जब जैन आचार्य परीक्षा-प्रधानी दृष्टि के उद्घोषक रहे हैं, तब यह कैसे संभव है कि जैन तंत्र वैज्ञानिक न हो ? यही कारण है कि इस सदी के अनेक विद्वानों ने इसके सिद्धान्तो को वैज्ञानिक विधि एवं भाषा मे विश्लेषित किया है। उन्होने बताया है कि यह तत्र केवल धर्मतंत्र ही नहीं है, अपितु समग्र विज्ञान है जो समस्त विश्व को समेकीकृत रूप में मानने के लिये वैज्ञानिक आधार देता है। इसके सिद्धान्तों को आधुनिक वैज्ञानिक मान्यताओ के परिप्रेक्ष्य में कम से कम गुणात्मक रूप में तो पुनर्व्याख्यायित किया ही जा सकता है। कुछ प्रकरणो में तो यह उनसे आगे भी जाता है और ज्ञान के क्षेत्र मे अपना विशिष्ट योगदान करता है। यहा हम जैनतंत्र की वैज्ञानिकता को निरूपित करने वाले कुछ प्रकरण देने का प्रयास कर रहे है। ये प्रकरण प्रायः भौतिक जगत से ही संबंधित है। वस्तु तत्व की प्रकृति के आधार पर उसकी परीक्षा व्यक्तिनिष्ठ प्रतिभा या स्वानुभूतिजन्य ज्ञान से की जा सकती है अथवा तर्क और बुद्धि के माध्यम से वस्तुनिष्ठ रूप मे की जा सकती है। सिद्धसेन ने इस परीक्षा विधि को अच्छी तरह व्याख्यायित किया है और सुझाया है कि जगत में कुछ ही वस्तुये या तत्व ऐसे है जिनका परिज्ञान शास्त्रो या अतींद्रिय अनुभव से होता है। फिर भी, एक ऐसा समय आया जब ये कुछ वस्तुये या तत्व (आत्मा, मोक्ष- आदि) ही प्रधान हो गये। इस प्रवृत्ति ने सामान्य जन के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रभावित किया और धर्मतंत्र बौद्धिक राजपथ से विचलित होकर श्रद्धापथ की ओर उन्मुख हो गया। यह स्थिति अब भी चल रही है। इससे वर्तमान मे धार्मिक आस्था मे क्षरण के लक्षण प्रकट होने लगे है । जैनतंत्र की वैज्ञानिक दृष्टि की पुनः स्थापना ही उसे बलवान बना सकती है। ब. ज्ञान का सिद्धान्त : बहु-दृष्टि परीक्षण का सिद्धान्त : अनेकांतवाद जैन आचार्यों ने सदैव यह प्रयत्न किया है कि प्रत्येक वस्तु (भौतिक या अमूर्त) का अध्ययन अनेक दृष्टिकोणों से किया जाय जिससे इसके विषय

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