Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ जैन तंत्र की वैज्ञानिकता /33 मे समग्र ज्ञान संभव हो सके। शास्त्रीय विवरणों के अनुसार, अध्ययन के इन दृष्टिकोणों की संख्या अब 130 तक चली गयी है। इस संख्या के आधार पर वस्तु के विषय में समग्र ज्ञान पाने की जटिलता स्पष्ट है। यह वस्तु स्वरूप की व्यक्तिनिष्ठ जटिलता का संकेत है। इतने अधिक कारकों के कारण इस कंप्यूटर युग के वैज्ञानिक भी इसका समग्र अध्ययन नहीं कर सकते। साथ ही, विभिन्न दृष्टिकोण से अध्ययन करते समय कभी कभी एक ही वस्तु के विषय में विरोधी-से लगते विवरण भी मिलतें है । उदाहरणार्थ, एक ही व्यक्ति किसी का पिता, भाई चाचा, पति, ससुर और साला होता है। यह तथ्य भिन्न-भिन्न संबंधों की दृष्टि से ही सत्यापित किया जा सकता है (पुत्र, पत्नी, भाई, इत्यादि दृष्टियों से)। इस प्रकार प्रत्येक संबध सापेक्षतः ही सत्य हैं, पूर्ण सत्य नही है । फलतः, प्रत्येकवस्तु का विशिष्ट स्वरूप सापेक्षता पर आधारित होता है। इसका समग्र विवरण हम अपनी भाषा के माध्यम से नहीं दे सकते। इसलिए हमारा ज्ञान सापेक्ष ज्ञान होता है और वह अंशतः ही सत्य हो सकता है। इस आंशिक सत्यता के निरूपण की विधि को जैनतत्र मे नयवाद कहा जाता है। चूंकि वस्तु के अध्ययन के लिये अनेक दृष्टिकोण होते है, अत. नय भी अनेक होते है। इन नयो से प्राप्त ज्ञानो के समग्र परिकलन की दृष्टि को स्यादवाद या अनेकातवाद कहते है। यह सापेक्षतावादी वास्तविकता जैनतत्र के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की मूलाधार रही है। यह एकातवादी दृष्टिकोणो के विपर्यास मे जाती है। गणित की भाषा में, समग्र वस्तु स्वरूप स्याद्वाद संकलित नय = [ नय....... 10 फलत. जैनतत्र के अनुसार, हमारा सामान्य ज्ञान सापेक्ष होता है, निरपेक्ष नही । यह सर्वज्ञ के लिये तो सभव है पर उसके लिये भी उसकी भाषिक अभिव्यक्ति कठिन होगी । यह बताया गया है कि किसी भी वस्तु के विषय मे सामान्य ज्ञान की प्राप्ति अधिकतम सात दृष्टियों से की जा सकती है। इस दृष्टि समुच्चय को सप्त भगी कहा जाता है। कोठारी ने बताया है कि यह सिद्धान्त क्वाटम यात्रिकी के अधिस्थान सिद्धान्त से समर्थन पाता है जहा वास्तव मे सप्तप्रकारी विवरण ही संभव होता है। इस जैन सिद्धान्त मे परिमाणात्मकता न भी हो, पर इसकी बौद्धिक गभीरता एव यथार्थता असदिग्ध है। यह = =

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101