Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ प्रकाशकीय हमारे लिए यह गौरव की बात है कि हम बिन्ध्य क्षेत्र के बुन्देल खण्ड प्रान्त में जन्मे और यहां की गरीब पर जीवन-दायी और संस्कार-युक्त सस्कृति व आबोहवा मे पले है। यहा का जीवन श्रम-साध्य, नेक और धार्मिक सस्कारों से युक्त है। यहां एक ओर वैदिक सस्कृति के चित्रकूट धाम और खजुराहो जैसे कला केन्द्र हैं, वहीं दूसरी ओर यहां पपौरा जी, अहार जी, द्रोणगिरी, नैनागिर, कुण्डलपुर, देवगढ, चन्देरी, सीरोन जी आदि जैन संस्कृति के मनोरंम केंद्र तथा कला के अपार भंडार स्थित हैं। परम पूज्य आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज ने पिछले लगभग 15 वर्षों मे यहा के जैन समाज मे संस्कृति के गौरव और उसके रक्षण के प्रति जो जागृति पैदा की है, वह हमें परम-पूज्य वर्णी जी महाराज के उन दिनो की याद कराती है जब समाज मे जैन संस्कृति, विद्या और ज्ञानोपार्जन के लिये साधनहीनता के बावजूद भी अनेक जैन संस्कृत विद्यालय व विद्वान् प्रदान किये। उसी परमपरा मे आज आचार्य श्री ने पढे लिखे, ज्ञानवान व चरित्र से भरपूर युवा, साधु माताये, मुनि, ब्रह्मचारी तथा धर्म संस्कृति के रक्षण के लिए एव मानव व प्राणी मात्र के लिए उपयोगी सार्वजिनक भाग्योदय तीर्थ एव सर्वोदय तीर्थ जैसे पवित्र संस्थान भी दिये हैं। इसी सदर्भ में आचार्य श्री के दर्शन, भ्रमण और सामीप्य का सौभाग्यशाली अवसर मुझे मिला और समाज के धार्मिक, नैतिक व चारित्रिक मूल्यो की पुनर्स्थापना के लिए मेरे मन मे एक ट्रस्ट स्थापित कर उसके द्वारा आचार्य श्री व उनके सुयोग्य शिष्यों, साधुओं के प्रवचन, लेख आदि का प्रकाशन कर जनसाधारण के उपयोग के लिए प्रकाशित करने का विचार आया और "पोतदार धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट" की स्थापना की। हमे प्रसन्नता है कि इस न्यास के प्रथम पुष्प के रूप मे परमपूज्य आचार्य संमत भद्र स्वामी का श्रावकों के लिए आदर्श रत्नत्रय धर्म की

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101