Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 13
________________ जिज्ञासुओं के लिए पर्याप्त ज्ञानवर्धक है। यह बहुत कम पुस्तको मे पाई जाती है। ___ यह पुस्तक उपदेश प्रधान नही है, बुद्धिपूर्वक श्रद्धा को जन्म देकर हितकारी एव सर्वोदयी आचरण और चितन की ओर प्रेरित करना इसका लक्ष्य है। यही इसकी विशेषता भी है और नये युग की आवश्यकता भी। यह पुस्तक लघुकाय है, पर इसमे वे सभी सूचनाए है जो जैन विद्या के प्राथमिक जिज्ञासु के लिए आवश्यक है। इसका अग्रेजी संस्करण विश्व के पांचो महाद्धीपो मे प्रसारित हुआ है। यह हिन्दी सस्करण भी लोकप्रिय बनेगा, यही शुभकामना है। छतरपुर, म०प्र० दशरथ जैन पूर्व मंत्री, म० प्र० शासन

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