Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

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Page 18
________________ xvii हो सका है कि संसार में हिंसा और युद्धों की श्रृंखला समाप्त हो जाय, फिर भी अनेक लेखक जैनधर्म की उस सुगंध का अनुभव करते हैं जहाँ यह इन समस्याओं के समाधान का परागण करता है। जैनों की मान्यता है कि विज्ञान और धर्म एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं। लेखक की दृष्टि में यह विश्व का सर्वाधिक वैज्ञानिक धर्म है जो दृष्ट, श्रुत, अनुभूत एवं सुधार की वृत्ति का प्रारंभ से ही प्रेरक है। यह माना जाता है कि पश्चिम में अहिंसा की विचारधारा सदैव अल्पमत में रही है। इसके विपर्यास में, यह प्रायः सभी पूर्वी तंत्रों की बहुमती विचारधारा रही है। जैन तत्र इस दृष्टि से पूर्ण अहिंसावादी रहा है । इस हिंसापूर्ण जगत में जैनतंत्र स्थायी निश्चेतक का काम करता है। जैनो की घोषणा है कि संसार के सभी प्राणी एकेद्रिय से लेकर पंचेद्रिय तक धार्मिक दृष्टि से बराबर हैं एवं विकास की समान क्षमतायें रखते हैं। उन्होने यह भी बताया है कि अहिंसक व्यवसाय भी प्रतिस्पर्धात्मकतः लाभकारी हो सकते हैं। वे यह भी मानते हैं कि संसार की वर्धमान प्रगति के लिये, चाहे भौतिक हो या आध्यात्मिक हो, सापेक्षवादी विचारणा की प्रवृत्ति ही लाभकारी होती है। यद्यपि यह सत्य है कि अनेक सिद्धान्तों एवं उनके प्रायोगिक रूपो में वैषम्य भी पाया जाता है, फिर भी वैज्ञानिक जैन तंत्र यह मानता है कि हिंसा का अल्पीकरण ही हमारे सिद्धान्तों का मूल है। वैज्ञानिक नियमों के अनुप्रयोगों मे भी प्रकृस्या दृश्य वैषम्य के कारण ही अनेक नियमों के आदर्श एवं व्यावहारिक रूप विकसित किये जाते हैं। - जैनतंत्र की ओर पश्चिम जगत का ध्यान बहुत देर से लगभग उन्नीसवीं सदी में आकृष्ट हुआ। लेकिन यह प्रसन्नता की बात है कि समय के साथ इस ओर उनका ध्यान और अनुसंधान निरन्तर बढता जा रहा है। धार्मिकता के क्षरण के इस युग में जैनतंत्र नई पीढी के लिये पर्याप्त मार्गदर्शन देता है। इस तंत्र को सामान्य एवं वैज्ञानिक रूप से समझने के लिये बहुत कम पुस्तके या पुस्तिकाये देखने मे आई है। यह पुस्तिका इस दिशा में एक लघुतम विनम्र प्रयत्न है। मुझे आशा है कि नई पीढी एव अन्य पाठक वर्ग इस प्रयास को प्रोत्साहन देगा और अपनी धार्मिकता को प्रबल बनायेगा । यह पुस्तिका निज-ज्ञान सागर शिक्षा कोष, सतना के प्रोत्साहन पर मूलत. अंग्रेजी में लिखी गई थी। इसका मूल नाम "जैन सिस्टम इन

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