Book Title: Sarvodayi Jain Tantra
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ जैन तंत्र के सिद्धांत /27 विताना समाहित है। इन मूलभूत चारित्रिक क्रियाओ के परिपालन के बाद जीवन सुधार का दूसरा चरण-नैष्ठिक चरण चालू होता है जिसमें प्रेम और शांति (अहिंसा), सत्य, ईमानदारी, स्वपत्नीव्रत तथा सम्पत्ति के समान वितरण के समान पाच अनिवार्य अणुव्रतों के परिपालन का अभ्यास किया जाता है। ये व्यक्ति और समाज में भाईचारे की भावना का विकास करते हैं। इन पांच अणुव्रतों के अतिरिक्त, सात पूरक व्रत भी होते हैं जिनमें गमन, दिशा, भोग्य सामग्री, आहार के साथ साधु एवं दुखी जनो की सेवा तथा पापमय या उपेक्षणीय क्रियाओं पर नियत्रण भी समाहित है। वस्तुतः ये सात व्रत अणुव्रतों के पालन के प्रायोगिक विस्तार ही हैं। इस सामान्य जैनचर्या मे छह आवश्यक या दैनिक कर्तव्य भी होते है- (1) देवपूजा, (2) गुरु सम्मान (3) शास्त्रों का स्वाध्याय, (4) आहार एव इन्द्रियजन्य विषयो पर नियत्रण (संयम) (5) जप-तप और (6) औषध, शास्त्र (स्कूल, पाठशाला आदि खोलना), अभय (पक्षी अस्पताल, धर्मशाला आदि) और आहार के रूप मे चार प्रकार के समाज हितकारी काम करना। इन कर्तव्यो के साथ आगमो में सामायिक (ध्यान, जप-तप) और प्रतिक्रमण (किये हुये अशुभ कार्यों के लिये आलोचना एव प्रायश्चित एव आगे न करने का संकल्प) को भी सामान्य कर्तव्यो में गिनाया गया है । वस्तुतः ये दोनो भी तप के ही अग है। यही वे कर्तव्य है जिन्होने जैन सघ को परिरक्षित कर रखा है। साथ ही, जैनों की अनेक जनहितकारी प्रवृत्तियो ने भी उनको भारतीय समाज मे प्रतिष्ठित स्थान दिलाया है। ये कर्तव्य जैन तत्र के मनोविश्लेषण एवं समाजशास्त्र से गहनतः संबधित है, यह स्पष्ट है। ___व्यक्ति एव समाज के लिये हितकारी इन अणुव्रतों, पूरक व्रतों, छह, आवश्यक दैनिक कर्तव्यों के परिपालन करने पर सामान्यजन एक ग्यारह -चरणी चारित्र श्रेणी (जिसे प्रतिमा कहते हैं) पर आरूढ होता है जिसके परिपालन से पूर्वोक्त ब्रतो मे सूक्ष्मता आती है। भौतिक और आध्यात्मिक कल्याण के प्रति अतदृष्टि जागती है। इस चारित्र श्रेणी के अंतिम ग्यारहवे चरण पर सामान्य जन आध्यात्मिक विकास के ततीय चरण-साधक या साधु चरण की ओर चलने लगता है। सामान्य जन पूर्वोक्त व्रतो को सूक्ष्मता से एवं पूर्णता से परिपालन नहीं कर सकता, क्योकि उसे आजीविका और अन्य समस्याओ से जूझना पडता है। इसलिये उसे आशिक सयमी श्रावक कहते हैं और उसके व्रतों को भी स्थूलद्रत ही कहा जाता है। फिर

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101