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आमुख
यह विज्ञान और तकनीकी विकास का युग है। इसके कारण मानव को बौद्धिक खुलापन मिला है। तर्कबुद्धि और प्रयोगकला में निपुणता प्राप्त हुई है। इसके साथ ही, मानव में यह विश्वास भी जागा है कि उसमें भौतिक और आध्यात्मिक विकास की अनत संभावनाएँ प्रमुख रूप मे विद्यमान है। अनीश्वरवादी तंत्र इस प्रकार की मनोवृत्तियो को प्रोत्साहित करते हैं। यह सौभाग्य की बात है कि इस प्रवृत्ति को विकसित करने में जैनतत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है। माइकेल टोबायास ने कहा है कि जैनतत्र के अध्ययन करते समय ही व्यक्ति मे जैनत्व आने लगता है और उसमे एक नयी आतरिक जीवनशक्ति का अनुभव होता है।
जैन तत्र प्रत्येक प्राणी को अनेक प्रकार के विरोधों से विदलित इस विश्व मे एक ईमानदारी पूर्ण एकता की प्रतीति की ओर निर्देशित करता है। यह जीव-वैज्ञानिक नीति शास्त्र का दर्शन है। यह आध्यात्मिक पर्यावरण के निर्माण का दर्शन है। यह अहिंसक वनस्पति विज्ञान और आध्यात्मिक प्राणिशास्त्रीय तत्र है। यह तत्र इस बात का प्रशिक्षण देता हैं कि ईर्ष्या एव द्वेष के दो क्षण जहाँ ससार में प्रलय ला सकते है, वहीं दो क्षणो का आत्मनिरीक्षण ससार को बचा भी सकता है। इसीलिए आचार्य समतभद्र ने इसे 'सर्वोदय तीर्थ' कहा है।
जैन तत्र मे मनोविज्ञान के मौलिक तत्व है। यह मानव के व्यवहारों का मनोविश्लेषण करता है और मनोभावो तथा मूर्छासिक्त अर्जनवृत्तियों को सीमित करने का नैतिक एव अहिसक विश्लेषण कर मानवहित के मार्ग सुझाता है। जैन तत्र एक प्रभावी प्रकृति-विज्ञानी है जहाँ यह अहिसक वनस्पति विज्ञान, प्राणिविज्ञान एव पर्यावरणिकी के विवरण प्रस्तुत कर समुचित दिशा निर्देश देता है। इस तत्र में अनेक त्रिक हैं जो मानव की भौतिक, वाचनिक और कायिक वृत्तियो के निरुपक हैं। ये त्रिक इसकी वैज्ञानिकता एव विश्वजनीनता को समर्थन देते है। यद्यपि यह सभव नहीं