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नटशैल" (जैनतंत्र : सक्षेप में) था । "धर्म" शब्द के प्रति अरुचि की प्रवृत्ति देखी जाती है, अतः मैने इसे 'तंत्र' शब्द के माध्यम से प्रस्तुत किया है आध्यात्मिक एवं भौतिक दृष्टि से, सर्वप्राणिहित- सवर्धनी सर्वोदयी आचारविचार पद्धति ही श्रेष्ठ तंत्र मानी जाती है। जैन तंत्र एक ऐसी ही पद्धति है। इसके अंग्रेजी सस्करण का देश एवं विदेश के विद्वत्-वर्ग एव सुधी जनों ने स्वागत किया है। इसके हिन्दी सस्करण का सुझाव अनेक दिशाओं से आता रहा है। मुझे प्रसन्नता है कि अब यह आपके समक्ष किंचित् परिवर्धित रूप मे "सर्वोदयी जैनतत्र" के नाम से सामने आ रहा है। मेरा विश्वास है कि इसका सर्वत्र स्वागत होगा। इस संस्करण मे भी यह ध्यान रखा गया है कि पुस्तिका के सुगम और सहज पाठन के लिये इसकी भाषा मे पारिभाषिक शब्द न्यूनतम रहें और विवरण जटिल न हो जाये। फिर भी, इसके सवर्धन एवं अपूर्णताओ के सम्बन्ध मे पाठको के सुझावो का सदैव स्वागत होगा।
पोतदार ट्रस्ट, टीकमगढ ने 'सर्वोदयी जैन तत्र' का प्रकाशन करके इसे देश विदेश के शिक्षित वर्ग एव आम को सुलभ कराया है। इससे भारतीय संस्कृति व साहित्य के साथ ही जैन सहित्य भी पल्लवित होगा । इस श्रेष्ठ कार्य के लिये मै ट्रस्ट के अध्यक्ष भाई कपूर चंद जी पोतदार एव पोतदार ट्रस्ट के प्रति आभारी हू ।
नंदलाल जैन