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मंगल आशीर्वाद
हम इक्कीसवीं सदी के द्वार पर हैं। यह विज्ञान और तकनीकी की सदी होगी। इस सदी में अपने अस्तित्व को प्रभावी और विस्तारशील बनाये रखने के लिये हमें अपने पुरातन नैतिक और धार्मिक ज्ञान को भी वैज्ञानिक रूप से वैज्ञानिक भाषा मे प्रस्तुत करने का अभ्यास करना होगा ।
जैन धर्म गुण-विशेषित धार्मिक तत्र है। इसमे वैज्ञानिक दृष्टि है। इसमे वैज्ञानिकता के सभी तत्व है। इसके इतिहास, दर्शन और धार्मिक मान्यताओं ने विश्व के विद्वत् जगत् को पर्याप्त प्रभावित किया है। पर उसकी प्रस्तुति परम्परावादी होने से इसे वह लोकप्रियता एवं विश्वजनीनता नहीं मिल सकी है जो इसे मिलनी चाहिए थी। इन दिनों जैन तंत्र से सम्बन्धित सभी स्तर का परम्परागत साहित्य पर्याप्त मात्रा में साधुजनों के माध्यम से, उनके आशीर्वाद से एव स्वतंत्र रूप से सामने आ रहा है। उसमे अतीत का पुट अधिक रहता है, वर्तमान और भविष्य प्रायः उपेक्षणीय जैसा ही रहता है । फलतः उसकी प्रभावकता का क्षेत्र सीमित होता है ।
इस प्रभाविता के संवर्धन मे लेखन की वैज्ञानिक पद्धतियों का स्वांगीकरण आवश्यक है। इसीलिए आधुनिक लेखन में सैद्धान्तिक चर्चाओ की सुस्पष्टता के लिए श्रव्य एवं पाठ्य सामग्री के अतिरिक्त दृश्य सामग्री भी अनिवार्य मानी जाती है। उसे वैज्ञानिक एवं गणितीय सूत्रो के रूप मे प्रस्तुत करना भी इसमे नवीनता लाता है। ऐसी सामग्री हमें इक्कीसवीं सदी मे जाने का सामर्थ्य देगी।
'सर्वोदयी जैनतत्र' के लेखक ने इस दिशा मे प्रयत्न किया है। उन्होने धर्म के सूत्र को गणित के सूत्रो मे परिणत किया है। रेखा चित्रो द्वारा आध्यात्मिक विकास के पथ की सरलता एव जटिलता बताई है और दस परम्परागत दृश्य चित्रो द्वारा जैन तत्र के मौलिक सिद्धान्त समझाये है। उन्होंने जैन इतिहास को राजनीतिक, साहित्यिक एवं सामाजिक रूप में प्रस्तुत कर नवीन रचनाकारो को एक दिशा दी है। सक्षेप मे, उन्होंने जैन जगत के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक जीवन का समग्र चित्र प्रस्तुत किया