________________
२८
सरस्वती
[ भाग ३८
•
उत्तर-भारत के पहाड़ियों से मिलते थे। स्त्रियाँ नीचे सारंग दिया। सधन्यवाद स्वीकार कर पलास्तर से वह रूमाल व ऊपर एक कोटनुमा कमर तक का कुर्ता-सा पहने थीं। फटी जगह के चारों ओर चिपका दिया गया और हम लोग यह कुर्ता हृदय के ऊपर बटन से बँधा और नीचे पेट तक अपनी जगहों में जा बैठे। यहाँ से पोर्ट डार्विन जाना था। खुला था।
बीच में ५०० मील में टिमूर समुद्र पड़ता था। कहीं ज़मीन समुद्र-तट पर रामबंग एक छोटी सी जगह है। नहीं मिलती है। कई वायुयान इस समुद्र में गिरकर गायब कन्टास ने यहाँ एयरोड्रोम अपनी सुविधा के लिए बनाया हो गये हैं। लंडन-आस्ट्रेलिया हवाई यात्रा में यह जगह है । कन्टास का पड़ाव बन जाने के कारण यहाँ के विश्राम- बड़ी ख़तरनाक समझी जाती है। हवाई यात्रा के भीरु गृह में बहुत कुछ सुधार हो गया है। इसमें तीन व्यक्ति अपने वक्तव्य में टिमूर समुद्र का नाम सबसे आगे कमरे थे । एक में मिसेज़ स्मिथ, दूसरे में मिस्टर बर्टमैन रक्खा करते हैं । इस समुद्र को पार करने के समय वायुयानऔर मैं, तीसरे में कैप्टन व फर्स्ट आफ़िसर ने रात काटने वाहकों को यह आदेश रहता है कि वे फालतू पेट्रोल टैंक को को डेरा डाला।
जो हर वायुयान में आकस्मिक घटना के लिए लगा रहता देखने के लायक यहाँ कुछ नहीं था। इसलिए भोजन है. अवश्य भर लिया करें। पर इस बार मौसम की रिपोर्ट कर व थोड़ी देर तक ग़प-शप कर सो रहे। सुबह नाश्ता अनुकूल थी, जिससे तथा बोझा के भी काफ़ी होने कर सवा पाँच बजे एयरोड्रोम पहुँचे और साढ़े पाँच बजे से कप्तान ने फालतू पेट्रोल-टैंक को नहीं भरा। मगर उसे
आकाश में मँडराने लगे। इस उड़ान में कोईपांग में ठहरना १२००० फुट की उँचाई से उड़ना था। था, जो वहाँ से ६०० मील पड़ता था। समुद्र पर से ही काईपांग छोड़ने के बाद ही हम लोग ऊँचे उठने ज़्यादातर उड़ान रही और हम लोग १० बजे के करीब लगे और १४,००० फुट की उँचाई की सतह पाकर आगे कोईपाँग पहुँच गये। स्वागत के लिए एक वृद्ध सज्जन बढ़े। नीचे जल ही जल था, इसलिए किताब निकाली खड़े थे । मुझे देखते ही हिन्दुस्तानी में बोले और मेरे और पढ़ने में समय काटना उचित समझा। सर्दी बढ़ने
आश्चर्यचकित होने पर कहा कि वे कश्मीरी हैं और वहाँ लगी और शीघ्र ही ओवरकोट का सहारा लेना पड़ा। बीस साल से बसे हुए हैं । राजनैतिक शरणागत होने के इंजिन का शोर भी ज़्यादा था, इसलिए कान में रुई भरनी कारण भारतवर्ष नहीं लौट सकते। अपना कारबार वहाँ पड़ी। तीन बजे आस्ट्रेलिया का किनारा नज़र आया । अच्छा जमा लिया है और अपने दो लड़कों को भी देश साढ़े तीन बजे पोर्ट डार्विन के 'एयरोड्रोम' में उतरे । से बुला लिया है। प्रमुख नागरिक होने की वजह से एयरो- हम लोग नीचे उतरनेवाले थे कि हुक्म मिला कि डोम के वे एक अवैतनिक अधिकारी हैं। मैं पहला ही आपकारा ह । म पहला ही जब तक डाक्टरी न हो जाय, नहीं उतर सकते । डाक्टर
जब तक डाक्टरा न ह भारतवासी था जो इतने दिनों के बाद वायुयान से साहब वायुयान के भीतर अाये। टीका का सर्टिफिकेट सफ़र करता हुआ उन्हें मिला था, इसलिए वे बहुत माँगा । टीका दो साल के अंदर लगा होना चाहिए, नहीं ख़ुश हुए थे। मुझसे कहने लगे कि श्राप रुक जायँ और तो यहाँ टीका लगाकर कैरेन्टाइन में भेज देते हैं। विदेशदूसरे वायुयान से आस्ट्रेलिया जाय । यह तो असंभव था, यात्रा के सम्बन्ध में मुझे ऐसे कानूनों से हमेशा सतर्क पर मुझसे वादा ले लिया कि लौटती बार उनके यहाँ रहना पड़ता है और मैंने अपना सर्टिफिकेट दिखला दिया। ज़रूर मुकाम करूँ । इसी तरह बातें करते नाश्ता किया और अन्य मुसाफ़िर भी सचेत थे और इस परीक्षा के बाद साढ़े दस बजे वायुयान पर चलने का आदेश मिला। डाक्टर ने अपने पीछे पीछे सबको आने के लिए कहा। कप्तान ने चारों ओर देखकर हमेशा की तरह वायुयान की उसके दफ्तर में पहुँचने पर सब मुसाफिरों से एक काग़ज़ परीक्षा की । एक पखने में न जाने कैसे एक फुट तक पट्टी पर दस्तखत कराये गये कि अगर दो हफ्ते के अन्दर फटकर खुल गई थी। इसकी मरम्मत करना ज़रूरी थी। आस्ट्रेलिया में किसी को भी कोई बीमारी हो तो वह चिपकाने का मसाला निकाला गया और एक सज्जन ने फटी स्वास्थ्य-विभाग को फ़ौरन सूचित करे, नहीं तो कानून-भंग पट्टी की जगह चिपकाने के लिए अपना बड़ा-सा रूमाल दे के इल्ज़ाम में जुर्माना व सज़ा का ज़िम्मेदार होना पड़ेगा ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com