Book Title: Sanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Author(s): Umashankar Sharma
Publisher: Chaukhamba Surbharti Prakashan

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Page 19
________________ ( १५ ) अध्याय पृष्ठ २०४, असत् पदार्थ का करणत्व २०४, नव्य-न्याय में करण-विवेचन : भवानन्द २०७, आत्मा का करणत्व २०९, व्युत्पत्तिवाद में कर्तव्यापार की अधीनता २१०, कारण तथा करण में भेद २११, करण तथा हेतु २१३, हेतु तथा तादर्थ्य में भेद २१७, 'आश्रय' करणतृतीया का अर्थ है--कौण्डभट्ट २१८, ब्रह्मसूत्र में करणत्व-विवक्षा २१८, नागेश द्वारा करणत्व-विवेचन २२०, करण के भेद २२२ । सम्प्रदान कारक २२४-२५८ व्युत्पत्ति २२४, पाणिनि-सूत्र का विश्लेषण २२४, 'कर्मणा', 'य... सः' तथा 'अभिप्रेति' के निवेश का प्रयोजन २२४, क्रियासम्बन्ध से सम्प्रदान २२७, कर्म तथा सम्प्रदान : भेदाभेद-विवक्षा २२९, भर्तृहरि द्वारा विवेचन २३०, दानक्रिया तथा सम्प्रदान : अन्वर्थसंज्ञकता २३३, सम्प्रदान के भेद २३४, कुछ संशयात्मक उदाहरण २३७, नव्य-न्याय में सम्प्रदान-विवेचन : उद्देश्यत्व २४०, इच्छाविषयत्व २४१, नागेश द्वारा सम्प्रदानत्व-निर्वचन २४३, स्वत्वविचार २४६, सम्प्रदान के अन्य सूत्र : 'रुच्यर्थानां प्रीयमाणः' इत्यादि २४७ । अपादान-कारक २५९-२८८ व्युत्पत्ति २५९, पाणिनीय लक्षण २५९, ध्रुव की शास्त्रीयता : अवधि की अनिवार्यता २६०, अपाय तथा वैशेषिक दर्शन का विभागविवेचन २६४, अन्यतरकर्मज तथा उभयकर्मज विभागों में अपादान की स्थिति २६५, नागेश द्वारा अपादानत्व-निर्वचन २६६, नैयायिकों के विभागाश्रयत्व-मत का खण्डन २६९, अपादानविषयक अन्य स्थल २७१, अपादान के भेद २७४, अपादान-विषयक सूत्रों की व्याख्या का विकास-क्रम २७७, उपसंहार २८८ । अधिकरण-कारक २८९-३१४ अधि का प्राचीन अर्थ २८९, अधिकरण का अर्थ २९०, आधार की परम्परया अधिकरणता २९०, वाक्यपदीय में अधिकरण-लक्षण २९०, आकाश तथा काल का आधारत्व २९३, उपवास-क्रिया में आधार २९६, नव्यन्याय तथा अधिकरण : भवानन्द द्वारा विवेचन २९८, नव्यव्याकरण में अधिकरण-विचार : कौण्ड तथा नागेश ३०३, अधिकरण के भेद ३०६, अधिकरण के अन्य भेद ३१३ । परिशिष्ट उपसंहार ३१५ सहायक ग्रन्थावली

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