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विषयानुक्रम
अध्याय
पृष्ठ ___ कारक-विषयक भारतीय चिन्तन का इतिहास १-३४ दार्शनिक चिन्तन का ऋग्वेद में प्रारम्भ १, पाणिनि-पूर्व वैयाकरण ३, पाणिनि ४, कात्यायन ६, पतञ्जलि ७, कारक तथा विभक्ति का पृथक् निम्पण ८, भर्तृहरि के वाक्यपदीय में कारक-विचार ९, काशिकावृत्ति ११, बंगाल में पाणिनीय व्याकरण १३, प्रक्रिया-ग्रन्थों का उद्भव तथा विकास----प्रक्रिया-ग्रन्थ-स्वरूप १४, रूपावतार १४, रूपमाला १५, प्रक्रियाकौमुदी १५, भट्टोजिदीक्षित के ग्रन्थ १५, वैयाकरणभूषण १८, अन्नम्भट्ट १९, विश्वेश्वरसूरि २०, नागेशभट्ट के ग्रन्थ २०, लघुमञ्जूपा की विषयवस्तु २२, अन्य व्याकरण-सम्प्रदाय २३, दस सम्प्रदायों का संक्षिप्त इतिहास २४, अन्य शास्त्रों में कारक-चर्चा २९, अद्वैतवेदान्त ३०, शाबरभाष्य ३१, न्यायदर्शन : प्राचीन तथा नव्य ३२, कारकविषयक प्रकरण ग्रन्थ ३३ । क्रिया तथा कारक
३५-७० कारकों का क्रिया से अन्वय ३५, क्रिया का स्वरूप : क्रिया, धातु तथा आख्यात ३५, फल तथा व्यापार के रूप में धातु का अर्थ ३६, निरुक्त में क्रिया का विचार ३७, क्रिया का 'करोति' या 'अस्ति' से अन्वय ३७, समन्वय ४०, वाक्यपदीय में क्रिया-विचार ४०, मण्डनमिश्र : फल की धात्वर्थता ४२, नागेश द्वारा इसकी आलोचना ४२, धात्वर्थ के एकांगी सिद्धान्त ४५, कर्तृवाच्य में व्यापार की प्रधानता ४६, कर्मवाच्य में फल की प्रधानता ४७, शाब्दबोध ४७, सकर्मक तथा अकर्मक धातु का अर्थ ४८, तिप्रत्यय का अर्थन्याय तथा व्याकरण के सिद्धान्त ५१, वाक्य में क्रिया का स्थान ५४, नामार्थ का क्रिया से सम्बन्ध-कारक का बीज ५५, क्रिया की गम्यमानता से कारक की व्यवस्था ५६, कारक-लक्षण ५७, कारक की शक्तिरूपता ( भर्तृहरि का मत ) ५८, कारकलक्षण-विमर्श ( अन्य लक्षणों पर विचार ) ६२, कारकभेद तथा उनका युक्तिमूलक विकास ६६, सम्प्रदान तथा अपादान की कारकता ६७ । कारक तथा विभक्ति
७१-१०० कारक-सम्बन्ध तथा उपपद-सम्बन्ध ७१, विभक्ति तथा सुप् की
पर्यायरूपता ७२, प्रथमादि विभक्तियों के दो रूप : कारकविभक्ति २सं०