________________
'भार्या भारविमोचनाय' के नियम से मेरी पत्नी अपनी दुर्भर रुग्णावस्था में भी मेरे अन्तरङ्ग तथा बहिरङ्ग गार्हस्थ्य-भार के विपुलांश का स्वयं वहन करके मुझे अध्ययन तथा ग्रन्थ-लेखन का अधिकाधिक अवसर देती रही हैं । उनके प्रति भी अत्यधिक कृतज्ञ हूँ।
इस ग्रन्थ को अपने प्रख्यात प्रकाशन संस्थान : चौखम्बा सुरभारती द्वारा शीघ्रातिशीघ्र एक वर्ष से भी कम समय में सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रकाशित करने के लिए मैं संस्थान के अधिकारियों का हृदय से कृतज्ञ हूँ । इस ग्रन्थ से विद्वानों तथा सुधी छात्रों का यदि कुछ भी उपकार हुआ तो मैं अपने श्रम को सार्थक समझूगा। आश्विनी पूर्णिमा, 1 २०५० वि० सं० !
-उमाशङ्कर शर्मा 'ऋषि' ३०-१०-१९९३ ई० )