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महोपाध्याय समयसुन्दर
प्रस्तुत संग्रह के प्रणेता १७ वीं शती के साहित्याकाश के जाज्वल्यमान नक्षत्र, महोपाध्याय पद-धारक, समय-सिद्धान्त (स्वदर्शन और परदर्शन ) को सुन्दर मंजुल-मनोहर रूप में जनसाधारण एवं विद्वत्समाज के सन्मुख रखने वाले, समय-काल एवं क्षेत्रोचित साहित्य का सर्जन कर समय का सुन्दर-सुन्दरतम उपयोग करने वाले अन्वर्थक नाम धारक महामना महर्षि समयसुन्दर गणि हैं। इनकी योग्यता एवं बहुमुखी प्रतिभा के सम्बन्ध में विशेष न कहकर यह कहें तो कोई अत्युक्ति न होगी कि कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य के पश्चात् प्रत्येक विषयों में मौलिक सर्जनकार एवं टीकाकार के रूप में विपुल साहित्य का निर्माता अन्य कोई शायद ही हुआ हो! साथ ही यह भी सत्य है कि आचार्य हेमचन्द्र के सदृश हीव्याकरण, साहित्य, अलङ्कार, न्याय, अनेकार्थ, कोष, छन्द, देशी भाषा एवं सिद्धान्तशास्त्रों के भी ये असाधारण विद्वान् थे । सङ्गीतशास्त्र की दृष्टि से एक अद्भुत कलाविद् भी थे।
. कवि की बहुमुखी प्रतिभा और असाधारण योग्यता का मापदण्ड करने के पूर्व यह समुचित होगा कि इनके जीवन
और व्यक्तित्व का परिचय दिया जाय; क्योंकि व्यक्तित्व के बिना बहुमुखी प्रतिभा का विकास नहीं हो पाता। अतः ऐतिह्य ग्रन्थों के अनुसार संक्षिप्त रूप से उनकी जीवन-घटनाओं का यहां क्रमशः उल्लेख कर रहा हूँ।
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