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(१४) अब जीव व्यवस्था वचनद्वार कथन । अडिल्ल. आदिअंत पूरण स्वभाव संयुक्त है । पर सरूप पर जोग कलपना मुक्त है ॥ सदा एकरस प्रगट कही है जैनमें । शुद्ध नयातम वस्तु विराजे बैनमें ॥ ११ ॥
अब हितोपदेश कथन ॥ कवित्त. . ___ सतगुरु कहे भन्यजीवनसो, तोरहु तुरत मोहकी जेल ॥ समकितरूप गहो अपनो गुण, करहु शुद्ध अनुभवको खेल ॥ पुद्गलपिंड भावरागादिक, इनसो नहीं तिहारो मेल ॥ ये जड़ प्रगट. गुपत तुम चेतन, जैसे भिन्न तोय अरु तेल ॥ १२ ॥
अब ज्ञाता विलास कथन ॥ सवैया ३१ सा. कोऊ बुद्धिवंत नर निरखे शरीर घर, भेदज्ञान दृष्टीसो विचार वस्तु वास तो। अतीत अनागत वरतमान मोहरस, भीग्यो चिदानंद लखे बंधमें विलास तो॥ बंधको विदारि महा · मोहको स्वभाव डारि, आतमको ध्यान करे देखे परगास तो ॥ करम कलंक पंक रहित प्रगटरूप, अचल अबाधित विलोके देव सासतो ॥ १३ ॥
अब गुणगुणी अभेद कथन ॥ सवैया २३ ॥ सा. . शुद्ध नयातम आतमकी, अनुभूति विज्ञान विभूति है सोई ॥ वस्तु विचारत एक पदारथ, नामके भेद कहावत दोई ॥ यो सरवंग सदा लखि
आपुहि, आतम ध्यान करे जब कोई । मेटि अशुद्ध विभावदशा तब, : सिद्ध स्वरूपकी प्रापति होई ॥ १४ ॥ . . .