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• वादसेती नाता तोरे चांदीकोसो सोधा है । जानेजाही ताहीन के मानेराही पाहीपीके, ठानेवातें डाही ऐसो धारावाही वोधा है ॥ ५॥
जिन्हकेजु द्रव्य मिति साधत छखंड थिति, विनसे विभाव अरि पंकति पतन है । जिन्हकेजु भक्तिको विधान एड नौ निधान, त्रिगुणके भेद मानो चौदह रतन है । जिन्हके सुत्रुद्धिराणी चूरे महा मोह वज, पूरे, मंगलीक जे जे मोक्षके जतन है ॥ जिन्हके प्रणाम अंग सोहे चमूं चतुरंग, तेइ चक्रवर्ति धनु धरे ये अतन है ॥ ६ ॥
श्रवण कीरतन चिंतवन, सेवन वेदन ध्यान । लघुता समता एकता, नौधा भक्ति प्रमाण ॥७॥
३१ सा-कोऊ अनुभवी जीव कहे मेरे अनुभौमें, लक्षण विभेद भिन्न करमको जाल है । जाने आप आपकोजु आपकरी आपविखे, उतपति नाश ध्रुव धारा असराल है। सारे विकलप मा सो न्यारे सरवथा मेरे, निश्चय स्वभाव यह व्यवहार चाल है । मैंतो शुद्ध चेतन अनंत चिनमुद्रा धारि, प्रभुता हमारि एकरूप तिहूं काल है ॥ ८॥
निराकार चेतना कहावे दरशन गुण, साकार चेतना शुद्ध गुण ज्ञान सारे है ।। चेतना अद्वैत दोउ चेतन दरव माहि, सामान्य विशेष सत्ताहीको विसतार है ॥ कोड कहे चेतना चिन्ह नाहीं आतमामें, चेतनाके नाश होत त्रिविधि विकार है ॥ लक्षणको नाश सत्ता नाश मूल वस्तु नाश, ताते जीवं दरवको चेतना आधार है ॥९॥
चेतन लक्षण आतमा, आतम सत्ता मांहि। सचा परिमित वस्तु है, भेद तिहू में नाहि ॥१०॥