Book Title: Samaysar Natak
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 126
________________ (१२५) हौ०-केवलज्ञान निकट जहा आवे । तहां जीव सत्र माह क्षपावे ॥ ' प्रगटे यथाख्यात परधाना । सो द्वादशम क्षीण गुण ठगना ॥ १०० ॥ पट साते आठे नवे, दश एकादश थान । अंतर्मुहूरत एकवा, एक समै थिति जान ॥ १०१॥ क्षपक श्रेणि आठे नवे, दश अर वलि बार । थिति उत्कृष्ट जघन्यभी, अंतर्मुहूरत काल ॥ १०२॥ क्षीणमोह पूरण भयो, करि चूरण चित चाल । अब संयोग गुणस्थानकी, वरणूं दशा रसाल ॥१०३॥ ३१ सा-जाकी दुःख दाता धाती चोकरी विनश गई, चोकरी अघाती जिरी जेवरी समान है ॥ प्रगटे तव अनंत दर्शन अनंत ज्ञान, वीरज अनंत सुख सत्ता समाधान है ॥ जाके आयु नाम गोत्र वेदनी प्रकृति ऐसी, इक्यासी चौऱ्यासी वा पच्यासी परमान है । सोहै जिन केवली जगतवासी । भगवान, ताकी ज्यो अवस्था सो संयोग गुणथान है ॥ १०४ ॥ ३१सा-जो अडोल परजंक मुद्राधारी सरवथा, अथवा सु काउसर्ग मुद्रा थिर पाल है ॥ क्षेत्र सपरस कर्म प्रकृतीके उदे आये, बिना डग भरे अंतरिक्ष जाकी चाल. है ॥ जाकी थिति पूरव करोड़ आठ वर्ष घाटि, अंतर मुहूरत जघन्य जग जाल है । सोहै देव अठारह दूषण रहित ताको, बनारसि कहे मेरी वंदना त्रिकाल है ॥ १०५ ॥ . : छंद-दूषण अठारह रहित, सो केवली संयोग । जनम मरण जाके. नहीं, नहि निद्रा भव रोग । नहि निद्रा भय रोग, शोक विस्मय मोहमति।

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