Book Title: Samaysar Natak
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 125
________________ (१२४) चौ०--थविर कल्प धर कछुक सरागी । जिन कल्पी महान वैरागी । इति प्रमत्त गुणस्थानक धरनी । पूरण भई. नथारथ वरनी.।। ९१ ॥. अव वरणो सप्तम विसरामा । अपरमत्त गुणस्थानक नामा ॥ जहां प्रमाद क्रिया विधि नासे । धरम ध्यान स्थिरता परकासे ।।९२॥ प्रथम करण चारित्रको, जासु अंत पद होय । . . . · जहां आहार विहार नहीं, अप्रमत्त है सोय ॥ ९३ ॥ चौ०-अव वरणूं अष्टम गुणस्थाना । नाम अपूरव करण वखाना ॥. कछुक मोह उपशम परि राखे । अथवा किंचित क्षय करि नाखे ॥ ९३ ॥ जे परिणाम भये नहि काही । तिनको उदै देखिये जवही ॥ .. तव अष्टम गुणस्थानक होई । चारित्र करण दूसरो सोई ॥९४ ॥ चौ०--अब अनिवृत्ति करण सुनि भाई। जहां भाव स्थिरता अधिकाई॥ पूरव भाव चलाचल जे ते । सहन अडोल भये सब ते ते ॥.९५ ॥ जहां न भाव उलट अधि आवे । सो नवमो गुणस्थान कहावे ॥ चारित्र मोह जहां बहु छोना । सो है चरण करण पद तीजा ॥ ९६ ॥ चौ०--कहूं दशम गुणस्थान दुशाखा । जहां सूक्षम शिवकी अभिलाखा ॥ सूक्षम लोभ दशा जहां लहिये । सूक्षम सांपराय सो कहिये ॥ ९७ ॥ :चो०-अब उपशांत मोह गुणठानां । कहों तासु प्रभुता परमाना.॥ जहां मोह उपसम न भासे । यथाख्यात चारित परकासे ॥ ९८. .. जहां स्पर्शके जीव गिर, परे करे गुण रद्द। . . . .: सो एकादशमी दशा, उपसमकी सरहद्द ॥ ९९ ॥

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