Book Title: Samaysar Natak
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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( १२२ )
धर्मराज विकथा वचन, निद्रा विषय कंपाय । पंच प्रमाद दशा सहित, परमादी मुनिराय ॥ ७८ ॥ ३१ सा - पंच महाव्रत पाले पंच सुमती संभाले, पंच इंद्रि जीति भयो भोगि चित चैनको ॥ पट आवश्यक क्रिया दुर्वित भावित साधे प्रासुक धरामें एक आसन है सैनको || मंजन न करे केश लुंचेतन वस्त्र मुंचे, त्यागे दंतवन पै सुगंध श्वास वैनको ॥ ठाड़ो करसे आहर लघु भुंजी एक वार, अठाइस मूल गुण धारी जती जैनको ॥ ७९ ॥
हिंसा मृषा अदत्त धन, मैथुन परिग्रह साज । किंचित त्यागी अणुवती, सब त्यागी मुनिराज ॥ ८० ॥ चले निराख भाखे उचित, भखे अदोष अहार । लेय निरखि, डारे निरखि सुमति पंच परकार ॥ ८१ ॥ समता वंदन स्तुति करन, पडकोनो स्वाध्याय । काऊत्सर्ग मुद्रा धरन, ए षड़ावश्यक भाय ॥ ८२ ॥
३१ सा—थविर कलपि जिन कलपि दुवीध मुनि, दोउ वनवासी दोउ नगन रहत हैं ॥ दोउ अठावीस मूल गुणके धरैया दोउ, सरवस्विं त्यागी है विरोगता गहत है ॥ थविर कलंपि ते जिन्हके शिष्य शाखा संग, बैठिके सभामें धर्म देशना कहत है || एकाकी सहज जिन कलीप तपस्वी घारे, उदैकी : मरोरसों परिसह सहत हैं ॥ ८३ ॥
३१ सा -- प्रीषममें धूपति सीतमें अंकंप चित्त, भूख घरे धीर - प्यासे · नीर न चहत है | डंस ं मसकादिसों न डरे भूमि सैन करे वध बंध विथामें
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