Book Title: Samaysar Natak
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(१२१) । चौ०--जो दशधा परिग्रहको त्यागी । सुख संतोष सहित वैरागी ॥
सम रस संचित किंचित ग्राही । सो श्रावक नौ प्रतिमा वाही ॥ ६८ ॥ परका पापारंभको, जो न देइ उपदेश । . सो दशमी प्रतिमा सहित; श्रावक विगत कलेश ।। ६९॥ चौ०-जो स्वच्छंद वरते तजि डेरा । मठ मंडपमें करे वसेरा ॥ उचित आहार उदंड विहारी । सो एकादश प्रतिमा धारी ॥ ७० ॥ एकादश प्रतिमा दशा, कहीं देशव्रत मांहिं ।. वही अनुक्रम मूलसों, गहीसु छूटे नांहि ॥ ७१॥ 'पट प्रतिमा ताई जघन्य, मध्यम नव पर्यंत । 'उत्कृष्ट दशमी ग्यारवीं, इति प्रतिमा विरतंत ॥७२॥ चौ०-एक कोटि पूरव गणि लीजे । तामें आठ वरष घटि. दीजे ॥ यह उत्कृष्ट काल स्थिति जाकी । अंतर्मुहूर्त जघन्य - दशाकी ॥७३॥ सत्तर लाख किरोड़ .मित छप्पन सहज किरोड़। येते वर्ष मिलायके, पूरह संख्या जोड़ ॥ ७४ ॥ अंतर्मुहूरत द्वै घड़ी, कछुक घाटि उतकिष्ट । एक समय एकावली, अंतर्मुहूर्त कनिष्ट ॥ ७५॥'यह पंचम गुणस्थानकी, रचना कही विचित्र ।
अव छठे गुणस्थानकी, दशा कहूं सुन मित्र ॥ ७६ ॥ पंच प्रमाद दशा धरे, अठाइस गुणवान । , स्थाविर कल्प जिन कल्प युता है प्रमत्त गुणस्थान ॥७॥

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