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३१ सालजावंत दयावंत प्रसंत प्रतीतवंत, पर दोषकों ढकया पर उपकारी है ॥ सौम्यदृष्टी गुणग्राही गरिष्ट सवकों इष्ट, सिष्ट पक्षी मिष्टवादी दीरघ विचारी है। विशेषज्ञ रसज्ञ कृतज्ञ तज्ञ धरमज्ञ, न दीन.न अभिमानी मध्य व्यवहारी है ॥ सहज विनीत पाप क्रियासों अतीत ऐसो, श्रावक पुनीत इकवीस गुणधारी है ॥ ५३॥ • छंद-ओरा घोरवरा निशि भोजन, बहु वीजा .गण संधान ॥ पीपर वर उंवर कठुवर, पाकर जो फल होय अजान ॥ कंद मूल माटी विष आमिष मधु माखन अरु मदिरा पान.॥ फल अति तुच्छ तुषार चलित रस, जिनमत ये बावीस अखान ॥ ५४॥
अब पंचम गुणस्थानकी, रचना वरणू अल्प ।
जामें एकादश दशा, प्रतिमा नाम विकल्प ॥ ५५॥ ३१. सा-दर्शन विशुद्ध कारी वारह विरत धारी । सामायक चारी पर्व प्रोषध विधी वहे ॥ सचित्तको परहारी दिवा अपरस नारी, आठो जाम ब्रह्मचारी निरारंभि व्है रहे । पाप परिग्रह छंडे पापकी न शिक्षा मंडे, कोड याके निमित्त करे सो वस्तु न गहे.॥ ये ते देवतके धरैया समकिती जीव, ग्यारह प्रतिमा तिने भगवंतनी कहे ॥ १६ ॥
संयम अंश जगे जहां, भोग अरुचि परिणाम । . उदै प्रतिज्ञाको भयो, प्रतिमा ताका नाम ॥ ५७ ॥.. आठ मूल.गुण संग्रह, कुव्यसन क्रिया नहिं. होय । दर्शन गुण निर्मल करे, दर्शन. प्रतिमा सोय ॥ ५८॥