Book Title: Samaysar Natak
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ (११७) लोक हास्य भय भोग रुचि, अयं सोच थिति मेव । मिथ्या आगमकी भगति, मृषा दर्शनी सेव ॥ ३८ ॥ चौपाई-अतीचार ये पंच प्रकारा । समल करहि समकितकी धारा ।। दूपण भूषण गति अनुसरनी । दशा आठ समकितकी वरनी ॥ ३९ ॥ प्रकृती सातों मोहकी, कहूं जिनागम जोय । जिन्हका उदै निवारिके, सम्यक दर्शन होय ॥ ४० ॥ ३१ सा--चारित्र मोहकी चार मिथ्यातकी तीन तामें, प्रथम प्रकृति अनंतानुबंधी कोहनी ॥ वीजी महा मान रस भीजी मायामयी तीजी, चौथे महा लोभ दशा परिगृह पोहनी ॥ पांचवी मिथ्यातमति छटी मिश्र परणति, सातवी समै प्रकृति समकित मोहनी ॥ येई षष्ट विंग वनितासी एक कुतियासी, सातो मोह प्रकृति कहावे सत्ता रोहनी ॥ ४ १ .॥ 'सात प्रकृति उपशमहि, जासु सो उपशम मंडित । सात प्रकृति क्षय करन हार, क्षायिक अखंडित । सात मांहि कछु क्षपे, कछु उपशम करि रक्खे । सो क्षयउपशमवंत, मिश्र समकित रस चक्खे । षट् प्रकृति उपशमे वा क्षपे, अथवा क्षय उपशम करे। सातई प्रकृति जाके उदै, सो वेदक समकित धेरे.॥ ४२ ॥ . . . . क्षयोपशम वर्ते त्रिविधि, वेदक चार प्रकार । क्षायक उपशम जुगल युत, नौधा समकित धार ॥४३॥ चार क्षपे वय उपशमे, पण क्षय उपशम दोय । १ षट् उपशम एकयों, क्षयोपशम त्रिक होय ॥४४॥ जहां चार प्रकृति

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134