Book Title: Samaysar Natak
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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( ११५ )
सासादन गुणस्थान यह, भयो समापत बीय ।. मिश्रनाम गुणस्थान अब, वर्णन करूं तृतीय ॥ २१ ॥
उपशमि समकीति कैतो सादि मिथ्याम, दुहूंनको मिश्रित मिथ्यात आइ गहे है ॥ अनंतानुबंधी चोकरीको उदै नाहि जामें, मिथ्यात समै प्रकृति मिथ्यात न रहे है | जहां सदहन सत्यासत्य रूप सम काल, ज्ञान भाव मिथ्याभाव मिश्र धारा वहे है ॥ याकी थिति अंतर मुहूरत उभयरूप, ऐसो मिश्र गुणस्थान आचारज कहे है ॥ २२ ॥
मिश्रदशा पूरण भई, कही यथामति भाव | अब चतुर्थ गुणस्थान विधि, कहूं जिनागम साखि ॥२३॥ ३१ सा— केई जीव समकीत पाई अर्ध पुदगल, परावर्तकाल 'ताई चोखे होई चित्तके ॥ केई एक अंतर महूरतमें गंठि भेदि, मारग उलंघि सुख वेदे मोक्ष वित्तके ॥ ताते अंतर महूरतसों अर्ध होहि तेते भेद समकित | जाहि समै जाको जब तवही गुण गहे दोष दहे इतके ॥ २४ ॥
पुद्गललों, जेते समै समकित होइ सोइ,
अध अपूर्व अनिवृत्ति त्रिक, करण करे जो कोय | मिथ्या गांठ विदारि गुण, प्रगटे समकित सोय ॥ २५ ॥ समकित उतपति चिन्ह गुण, भूषण दोष विनाश । अतीचार जुत अष्ट विधि, वरणो विवरण तास ॥ २६ ॥
चौपाई - सत्य प्रतीति अवस्था जाकी । दिन दिन रीति गहे समतांकी ॥ छिन छिन करे सत्यको साको। समकित नाम कहावे ताको ॥ २७॥

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