Book Title: Samaysar Natak
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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( ११६ )
कैतो सहज स्वभावके, उपदेशे गुरु कोय | चहुगति सैनी जीवको, सम्यक् दर्शन होय ॥ २८ ॥ आपा परिचे निज विपें, उपजे नहिं संदेह । सहज प्रपंच रहित दशा, समकित लक्षण एह ॥ २९ ॥ . करुणावत्सल सुजनता, आतम निंदा पाठ । समता भक्ति विरागता, धर्म राग गुण आठ ॥ ३० ॥ 'चित प्रभावना भावयुत, हेय उपादे वाणि । धीरज हरप प्रवीणता, भूषण पंच वखाणि ॥ ३१ ॥ अष्ट महामद अष्ट मल, पट आयतन विशेष । तीन मूढता संयुक्त, दोष पचीसों एप ॥ ३२ ॥ जाति लाभ कुल रूप तप, बल विद्या अधिकार । इनको गर्वजु कीजिये, यह मद अष्ट प्रकार ॥ ३३ ॥ चौपाई - अशंका अस्थिरता वंहा । ममता दृष्टि दक्षा दुरगंछा ॥ वत्सल रहित दोष पर भाखे । चित प्रभावना मांहि न राखे ॥ ३४ ॥
कुगुरु कुदेव कुधर्म धर, कुगुरु कुदेव कुधर्म | इनकी करे सराहना, इह पडायतन कर्म ॥ ३५ ॥ देव मूढ गुरु मूढता, धर्म मूढता पोप ।
आठ आठ पट् तीन मिलि, ये पचीस सब दोष ॥ ३६ ॥ ज्ञानगर्व मतिमंदता, निष्ठुर वचन उद्गार ।
रुद्रभाव आलस दशा, नाश पंच परकार ॥ ३७ ॥

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